मंगलवार, 24 अक्टूबर 2017

= नाम-अष्टक(ग्रन्थ २०-५) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= नाम-अष्टक(ग्रन्थ २०) =*
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*देव मैं दैत्य मैं, ऋष्य मैं यक्ष मैं ।*
*योग मैं यज्ञ मैं, ध्यान मैं लक्ष मैं ॥*
*तीन हूं लोक मैं, एक तूं ही भजे ।*
*हे अजे हे अजे, हे अजे हे अजे ॥५॥*
हे अजन्मा ! इस संसार में जितने भी शक्तिसम्पन्न प्राणी हैं - देव, दैत्य(राक्षस), ऋषि-मुनि, यक्ष-गन्धर्व - उन सभी में आपके द्वारा प्रदत्त शक्ति ही काम करती है, उनका अपना कुछ नहीं है । इसी तरह जितने भी शक्तिसाधक कर्म हैं - योग, यज्ञ, ध्यान और लक्ष्य आदि सभी में आपके द्वारा प्रदत्त बल ही काम करता है ।
आपकी इसी सामर्थ्य के कारण तीनों लोकों(पृथ्वी, आकाश, पाताल) में सभी प्राणियों द्वारा विपत्ति-सम्पत्ति में आपका ही स्मरण किया जाता है ॥५॥
(क्रमशः)

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