#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*दादू छाजन भोजन सहज में, संइयाँ देइ सो लेइ ।*
*तातैं अधिका और कुछ, सो तूं कांई करेइ ॥*
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साभार ~ स्वामी सौमित्राचार्य
*“प्रपत्ति” ~ ‘नमामि भक्तमाल को’*
*श्री गदाधरदास जी – २*
श्री गदाधरदास जी कुछ बचाकर नहीं रखते थे. संत-भगवंत की सेवा के लिये जो सामान आता था उसे उसी दिन सेवा में लगा देते थे. एक दिन रसोइये ने कुछ सामान दूसरे दिन के लिये बचा लिया. संयोगवश उसी दिन कुछ संत इनके आश्रम पर आ गए. इन्होंने रसोइये से कहा कि अगर कुछ सामान बचा हो तो संतों की सेवा में लगा दो. रसोइये ने कहा कि कुछ सामान तो है पर वह कल ठाकुर जी के भोग के लिये रखा है. इन्होंने कहा कि कल की व्यवस्था ठाकुर जी कर देंगे अभी संतों की सेवा करो. रसोइये ने बिना मन के रसोई बनाकर संतों को प्रसाद पवाया. श्री गदाधरदास जी संतों की सेवा करके बहुत प्रसन्न हुए. संतों ने भी इन्हें खूब आशीर्वाद दिया.
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अब दूसरे दिन तीन पहर तक कहीं से कुछ नहीं आया. इससे रसोइया बहुत क्रोधित हुआ और कहने लगा – ‘पता नहीं कब ऐसे गुरु से और इस दुःख से छुटकारा मिलेगा.’ तभी एक सेठ भक्त आया और उसने दो सौ रूपए दिए. इन्होंने कहा कि ये पैसे इस रसोइये के सिर पर पटक दो. सेठ जी ने सोचा कि महाराज जी उससे रुष्ट हैं. तब इन्होंने सेठ जी को सारी बात बताई. तब से सेठ ने नियम बना लिया कि रोज़ भोग में जितना सामान लगता वह प्रतिदिन आकर देने लगा.
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श्री गदाधरदास जी ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में मथुरा में निवास किया और प्रिया-प्रियतम की दिव्य लीलाओं का आस्वादन करते हुए उनके चरण कमलों में ही अपने मन को लगा दिया.
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हम अपना विश्वास प्रभु पर पूरी तरह से नहीं रख पाते हैं जिस कारण हमेशा चिंताग्रस्त रहते हैं और यही चिंता क्रोध की भी सृष्टि कर देती है. हमारे अन्दर यह अहंकार भरा हुआ है कि अपनी व्यवस्था हम स्वयं करते हैं. पर वास्तविकता तो यह है कि सबकी व्यवस्था प्रभु ही करते हैं. जहाँ कहीं व्यवस्था होती नहीं दिख रही है तो उसका कारण है कि हम स्वयं प्रभु को व्यवस्था करने ही नहीं दे रहे हैं. जब तक हम चिंतित हैं तब तक हमें अपने बल का अभिमान है और यह अभिमान ही प्रभु की कृपा को हम तक नहीं पहुँचने देता है. बस ये चिंता अगर चिंतन में बदल जाए तो हमें हर पल प्रभु की कृपा का अनुभव होने लगेगा.
“स्वामी सौमित्राचार्य”

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