#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*साँच का अंग १३*
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*परमार्थी*
जे हम छाड़ैं राम को, तो कौन गहेगा ।
दादू हम नहिं उच्चरैं, तो कौन कहेगा ॥१६०॥
१६० में कह रहे हैं - परमार्थी पुरुष यथार्थ ही कहते हैं - यदि हम अकबर की सभा में राम - नाम को बोलना छोड़ दें तो उसको कौन ग्रहण करेगा ? यदि हम उसको सच्छी बातें न कहेंगे तो कौन कहेगा ?
प्रसंग कथा - अकबर बादशाह के आह्वान पर आमेर से सीकरी जाते समय मार्ग में शिष्यों ने प्रार्थना की थी - अकबर मुसलमान है, उसके आगे राम - नाम वो उसे अच्छी न लगे ऐसी सच्छी बातें न कहियेगा । उन्हीं को १५८ से उत्तर दिया था ।
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*साधक को उपदेश*
एक राम छाड़ै नहीं, छाड़े सकल विकार ।
दूजा सहजैं होइ सब, दादू का मत सार ॥१६१॥
१६१ - १६२ में राम दर्शनार्थी साधक को उपदेश कर रहे हैं - साधक को चाहिये - एक राम का चिन्तन न छोड़े और सँपूर्ण विकार छोड़ दे । राम - चिन्तन के समय अन्य जो दैवी सँपदा के गुण - सँपादन और योग - क्षेमादि रूप सब कार्य तो अपने आप सहज स्वभाव से ही होते रहते हैं । हमारा यही सार मत है ।
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जे तूँ चाहै राम को, तो एक मना आराध ।
दादू दूजा दूर कर, मन इन्द्री कर साध ॥१६२॥
यदि तू राम का साक्षात्कार करना चाहता है तो पहले देवी - देवतादि अन्य की उपासना रूप कार्य त्याग दे और मन इन्द्रियों को भोग वासना से रहित करके उत्तम बना, फिर एकाग्र मन से राम की आराधना कर ।
(क्रमशः)

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