गुरुवार, 19 अक्टूबर 2017

= नाम-अष्टक(ग्रन्थ २०-२) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= नाम-अष्टक(ग्रन्थ २०) =*
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*च्यारि हू खानि के जीव तैं सृजै ।* 
*जोनि ही जोनि के द्वार आये बृजै ॥* 
*ते सबै दुःख मैं जे तुम्हैं बीसरे ।* 
*ईश्वरे१ ईश्वरे ईश्वरे ईश्वरे ॥२॥* 
(१. माधवे, केशवे, ईश्वरे आदि सुन्दरे पर्यत शब्द सम्बोधन वा सप्तमी के अर्थ में यथारुचि दे सकते हैं, भाषाविशेषता के अभिप्राय से । सु० ग्र० ३ : ३) 
हे ईश्वर ! जरायुज, अण्डज, उदिभ्ज एवं औपपातिक - इन चारों प्रकार की योनियों में आप ही प्रानोयों का सर्जन(उत्पादन) करते हैं । प्राणियों का इस योनि से उस योनि में आवागमन आपके ही संकेत से होता है ।(अर्थात् सभी प्राणी प्रत्येक योनि में आपके ही इशारे से आते-जाते हैं, जन्मते-मरते हैं) । इस संसार में, जो आपका स्मरण नहीं करते, वे सदा दुःखपंक में ही धंसे रहते हुए भवजाल में फँसकर दुर्गति को प्राप्त होते हैं ॥२॥ 
(क्रमशः)

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