बुधवार, 25 अक्टूबर 2017

= १२३ =

卐 सत्यराम सा 卐
*भक्ति भक्ति सब कोइ कहै, भक्ति न जाने कोइ ।*
*दादू भक्ति भगवंत की, देह निरन्तर होइ ॥* 
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*((((((((( प्रेम के भूखे )))))))))*
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वृन्दावन में बिहारी जी की अनन्य भक्त थी । नाम था कांता बाई... बिहारी जी को अपना लाला कहा करती थी उन्हें लाड दुलार से रखा करती और दिन रात उनकी सेवा में लीन रहती थी। क्या मजाल कि उनके लल्ला को जरा भी तकलीफ हो जाए।
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एक दिन की बात है कांता बाई अपने लल्ला को विश्राम करवा कर खुद भी तनिक देर विश्राम करने लगी तभी उसे जोर से हिचकिया आने लगी ...और वो इतनी बेचैन हो गयी कि उसे कुछ भी नहीं सूझ रहा था ...तभी कांता बाई कि पुत्री उसके घर पे आई जिसका विवाह पास ही के गाँव में किया हुआ था तब कांता बाई की हिचकिया रुक गयी।
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अच्छा महसूस करने लग गयी तो उसने अपनी पुत्री को सारा वृत्तांत सुनाया कि कैसे वो हिच कियो में बेचैन हो गयी तब पुत्री ने कहा कि माँ मैं तुम्हे सच्चे मन से याद कर रही थी उसी के कारण तुम्हे हिचकिया आ रही थी और अब जब मैं आ गयी हू तो तुम्हारी हिचकिया भी बंद हो चुकी है। कांता बाई हैरान रह गयी कि ऐसा भी भला होता है ? तब पुत्री ने कहा हाँ माँ ऐसा ही होता है जब भी हम किसी अपने को मन से याद करते है तो हमारे अपने को हिचकिया आने लगती है।
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तब कांता बाई ने सोचा कि मैं तो अपने ठाकुर को हर पल याद करती रहती हू यानी मेरे लल्ला को भी हिचकिया आती होंगी ?? हाय मेरा छोटा सा लल्ला हिचकियो में कितना बेचैन हो जाता होगा ! नहीं ऐसा नहीं होगा अब से मैं अपने लल्ला को जरा भी परेशान नहीं होने दूंगी और ...उसी दिन से कांता बाई ने ठाकुर को याद करना छोड़ दिया। अपने लल्ला को भी अपनी पुत्री को ही दे दिया सेवा करने के लिए। लेकिन कांता बाई ने एक पल के लिए भी अपने लल्ला को याद नहीं किया ...
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और ऐसा करते करते हफ्ते बीत गए और फिर एक दिन ... जब कांता बाई सो रही थी तो साक्षात बांके बिहारी कांता बाई के सपने में आते है और कांता बाई के पैर पकड़ कर ख़ुशी के आंसू रोने लगते है....? कांता बाई फौरन जाग जाती है और उठ कर प्रणाम करते हुए रोने लगती है और कहती है कि... प्रभु आप तो उन को भी नहीं मिल पाते जो समाधि लगाकर निरंतर आपका ध्यान करते रहते है... फिर मैं पापिन जिसने आपको याद भी करना छोड़ दिया है आप उसे दर्शन देने कैसे आ गए ??
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तब बिहारी जी ने मुस्कुरा कर कहा - माँ कोई भी मुझे याद करता है तो या तो उसके पीछे किसी वस्तु का स्वार्थ होता है या फिर कोई साधू ही जब मुझे याद करता है तो उसके पीछे भी उसका मुक्ति पाने का स्वार्थ छिपा होता है लेकिन धन्य हो माँ तुम ऐसी पहली भक्त हो जिसने ये सोचकर मुझे याद करना छोड़ दिया कि कहीं मुझे हिचकिया आती होंगी। मेरी इतनी परवाह करने वाली माँ मैंने पहली बार देखी है तभी कांता बाई अपने मिटटी के शरीर को छोड़ कर अपने लल्ला में ही लीन हो जाती है।
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इसलिए बंधुओ वो ठाकुर तुम्हारी भक्ति और चढ़ावे के भी भूखे नहीं है वो तो केवल तुम्हारे प्रेम के भूखे है उनसे प्रेम करना सीखो। उनसे केवल और केवल किशोरी जी ही प्रेम करना सिखा सकती है। तो क्या बोलना है...
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(((((((((( जय जय श्री राधे ))))))))))
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