#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*सतगुरु शब्द विवेक बिन, संयम रह्या न जाइ ।**दादू ज्ञान विचार बिन, विषय हलाहल खाइ ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
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**श्री रज्जबवाणी गुरु संयोग वियोग माहात्म्य का अंग ९**
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आज्ञाकारी अंग के अनन्तर गुरु के संयोग और वियोग से होने वाले फलाफल का परिचय देने के लये गुरु संयोग वियोग महात्म्य का अंग कह रहे हैं -
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सद्गुरु प्रत्यक्ष परसतैं, शिष की शंका जाँहिं ।
ज्यों दिनकर१ सौं दिन दरसे, त्यों निशि सूझे नाँहिं ॥१॥
सद्गुरु के मिलने पर शिष्य की शंका नष्ट हो जाती है, यह प्रत्यक्ष ही है । जैसा सूर्य१ के प्रकाश दिन में दिखता है, वैसा रात्रि में नहीं दिखता । वैसे ही गुरु के संग से ज्ञान होता है, वैसा ज्ञान गुरु के अभाव में नहीं होता ।
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गुरु चन्दन जीवित मुवौं, वचन वास बिच होय ।
नर तरु निपजे परसपर, त्यों पीछे नहिं कोय ॥२॥
चन्दन मृतकवत सूखे काष्ठों को भी अपनी सुगन्ध द्वारा उन्हें सुगन्धित करना रूप जीवन देता है । वैसे ही गुरु ज्ञानहीन नरों को भी अपने वचनों द्वारा ज्ञानयुक्त करता है । सुगन्ध द्वारा चन्दन और काष्ठ परस्पर मिलते हैं तब चन्दन बनते हैं । गुरु वचनों द्वारा गुरु और नर परस्पर मिलते हैं तब नर ज्ञानी बनते हैं । चन्दन और गुरु के अभाव में उक्त कार्य सिद्ध नहीं हो सकता ।
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शब्द डंक गुरु भृंग पर, मारत तन में जंत१ ।
उभय उतर्यों उभय अंग, सु कला न कंटक२ मंत३ ॥३॥
शब्द गुरु के पास हो और डंक भृंग के पास हो तब ही गुरु शिष्य के शब्द मारता है और भृंग कीट१ के डंक मारता है । शब्द गुरु से हट जाय तथा डंक भृंग से हट जाय, तो इन दोनों के हट जाने से शिष्य और कीट में परिवर्तन रूप सुन्दर कला प्रकट नहीं होगी । उस उद्योग में विध्न२ ही समझो३ ।
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गुरु हमाइ१ संयोग शब्द पर, परस्यूं पलटे प्राण ।
रज्जब बिछड्यूं बल घटे, समझै संत सुजाण ॥४॥
हुमा१ पक्षी की छाया के संयोग से प्राणी दरिद्री से बदलकर राजा हो जाता है और गुरु के शब्द संयोग से साधारण मानव से बदलकर संत हो जाता है । हुमा और गुरु के संयोग बिना उनका वर्तमान बल भी घटता जाता है किन्तु इस रहस्य को कोई विरले बुद्धिमान संत ही समझ पाते हैं ।
(क्रमशः)

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