सोमवार, 23 अक्टूबर 2017

= ११९ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*यों मन तजै शरीर को, ज्यों जागत सो जाइ ।*
*दादू बिसरै देखतां, सहज सदा ल्यौ लाइ ॥* 
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साभार ~ Swami Aksharanand Saraswati 

ध्यान क्या है ? 
सनातन वैदिक पारसी यहूदी बहावी ईसाई और इस्लामी धर्मोनुयाइयोँ की धार्मिक मान्यताएं परस्पर विरोधी साधना पद्धतियोँ का प्रतिपादन भले ही करती होँ, किन्तु ध्यान के बिन्दु पर सभी धर्माबलम्बी सारे वैशम्योँ को भुलाकर एक ही पंक्ति मेँ खड़े दिखाई देते हैँ । एक ही स्वर मेँ ध्यान महत्ता को स्वीकार करते हैँ ।
अंग्रेज़ी मेँ ध्यान के समानार्थी शब्दोँ के रूप मेँ मेडिटेशन, विज़डम और अवेयरनेस शब्द सुलभ हैँ । मेरे विचार मेँ केवल अवेयरनेस शब्द ही ध्यान के स्वरूप से निकटस्थ है क्योँ की ध्यान तार्किक बुद्धि से परे स्वाभाविक और समग्र जागरूकता का प्रदर्शन करता है । हिन्दी मेँ ध्यान के पर्याय रूप मेँ केवल बोध शब्द ही प्रयुक्त हो सकता है, क्योँकि बोध मेँ केवल स्वानुभव है । निभाव निर्विचार दर्शन मात्र है । अपने भीतर के सम्पूर्ण अक्रिय निशीथ शान्त क्षेत्र मेँ प्रवेश करके मनुष्य इस अद्भुत ध्यान की अथाह गहराइयोँ मेँ डूब कर माया प्रपञ्च से मुक्त होकर स्वयं ही खुद पर मोक्ष धाम का दिव्य द्वार खोल देता है । यथार्थ मेँ ध्यान का राज पथ मन से शुरू होकर आत्म -साक्षात्कार तक पहुँचाता है, बिना कुछ किये ।
ध्यान क्या है ? 
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ध्यान वास्तव मेँ बौद्धिक स्तर पर इन्द्रियोँ मन और अहंकार के तादात्म्य से व्यक्तित्व के विकास के लिए बाहर लोक से अर्जित समस्त ज्ञान के भण्डार को विसर्जित करने की क्रिया प्रक्रिया शून्य शरीर की परम अक्रिय अवस्था है, जिसमेँ साधक अन्तस चेतन की समग्र जागरूकता से तादात्म्य करके अपने चेतन स्वरूप से तदाकार हो जाता है । अपने भीतर व्याप्त अद्भुत शान्ति का साक्षी बनकर शीतोषण सुख दुःखात्मक अनुभूतियोँ से पूर्ण मुक्त हो जाता है । निर्विकल्प निर्विचार निर्भाव अवस्था मेँ स्थित रहकर अपने अस्तित्व का दृष्टा हो जाता है । सिर्फ होना भर रह जाता है । बोध मात्र दर्शन रह जाता है ।
ध्यान अपने भीतर गहरे और गहरे बहुत गहरे उतरने की युक्ति रहित युक्ति है,जहाँ हमारा अकर्त्तापन कुछ न करना और करने को कुछ भी शेष न रहना प्रत्यक्ष होता है । यही हमारा स्वप्रकाश्य स्वरूप है । बुद्धि का प्रज्ञा रूपान्तरण है । सजग दृष्टि या प्रज्ञा चक्षु की प्राप्ति है, जो भीतर के विराटत्व का साक्षी बनता है । यह प्रज्ञा चक्षु आत्म स्वरूप की स्वानुभूत जागृति है जिसे ध्यान के अलावा अन्य किसी तरह नहीँ पा सकते ।

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