मंगलवार, 3 अक्टूबर 2017

= गुरु-उपदेश-ज्ञानाष्टक(ग्रन्थ १७- दो.-९.१०/गी.-८) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= गुरु-उपदेश-ज्ञानाष्टक(ग्रन्थ १७) =*
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*= दोहा =*
*सुन्दर सद्गुरु यौं कहै, मुक्त सहज ही होय ।*
*या अष्टक तैं भ्रम मिटै, नित्य पढै जे कोय ॥९॥*
(अन्त में श्रीसुन्दरदासजी महाराज इस गुरु-उपदेश-ज्ञानाष्टक का माहात्म्य वर्णन कर रहे हैं -) सद्गुरु ने मुदित होकर यह आशीर्वचन कहा है कि जो इस अष्टक का नित्य पाठ करेगा, वह बिना किसी श्रम के इस सहज उपाय(नित्य-पाठ) से ही मुक्त हो जायगा और इस जगत् का मिथ्यात्व सही ढंग से समझ जायगा ॥९॥
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*= गीतक =*
*जौ पढै नित प्रति ज्ञान अष्टक,*
*मुक्त होइ सु सहज ही ।*
*संशय न कोऊ रहै ताकै,*
*दास सुन्दर यह कही ॥*
*जिनि ह्वै कृपाल अनेक तारे,*
*सकल विधि उद्दांम हैं ।*
*दादू दयाल प्रसिद्ध सद्गुरु,*
*ताहि मोर प्रनांम हैं ॥८॥*
जो जिज्ञासु महाकवि सुन्दरदास कृत ज्ञानाष्टक का नित्य पाठ करेगा वह सहज(अनायास) ही इस संसार से मुक्ति पा लेगा । 
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उसे इसके प्रति किसी प्रकार का संशय या भ्रम नहीं रहेगा, वह इसकी तुच्छता जान लेगा । 
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जिन सद्गुरु श्री दादूदेव ने अहेतुकी कृपा के द्वारा अपने अनेक शिष्य(भक्त) जनों को ज्ञानोपदेश से मुक्ति दिला दी, 
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जो सर्वस्वतन्त्र और महान् हैं उन गुरुदेव को मेरा कोटिशः दण्डवत्-प्रणाम(सत्यराम) है ॥८॥
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*= दोहा =*
*सुन्दर अष्टक सब सरस, तुम जिनि जांनहु आंन ।*
*अष्टक याही कहै सुनै, ताकै उपजै ज्ञांन ॥१०॥*
*॥ समाप्तोSयं गुरु-उपदेश-ज्ञानाष्टक ग्रन्थः ॥*
(अब प्रश्न उठता है कि जब केवल इसी अष्टक के नित्य पाठ से भक्ति मिल सकती है तो कवि के बनाये अन्य अष्टक-काव्यों को क्यों पढ़-सुन कर व्यर्थ समय बर्बाद किया जाय ? इसके उत्तर में कवि कहते हैं -) मेरे बनाये सभी अष्टक सरस(काव्यामृत या ब्रह्मामृत से भरे पड़े) हैं, उनके प्रति किसी प्रकार की उपेक्षा नहीं करनी चाहिये, उनका भी श्रवण-मनन करना ही चाहिए; परन्तु नित्य पाठ(गुरु-महिमा-गान) के रूप में तो यही अष्टक विशेष रूप से उपादेय है१(१. अत एव प्रचलित परिपाटी के अनुसार आज भी प्रत्येक दादूपन्थी साधु सायंकाल की सन्ध्या- पूजा में व्यक्तितः या सामूहिक रूप से इस अष्टक का पाठ अवश्य करता है ।) ॥१०॥
*॥ गुरु-उपदेशज्ञान अष्टक समाप्त हुआ ॥*
(क्रमशः)

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