🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= आत्मा अचलाष्टक(ग्रन्थ २१) =*
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*द्वितीय उदाहरण -*
*सृष्टि सबाइ चलत हैं, चलै न कबहू राह ।*
*अपने अपने काम कौं, चलै चौर अरु साह ॥*
*चलै और अरु साह, कहै सब मारग चालै ।*
*तृतीय उदाहरण -*
*जल हालत लगि पौंन, कहै प्रतिबिंब१ हि हालै ॥*
*सुन्दर आतम अचल, देह आवै अरु जाई ।*
*राह ठौर, चालत है सृष्टि सबाई ॥२॥*
(दूसरा उदाहरण -) इसी तरह सृष्टि के सभी प्राणी ही चले हैं, रास्ता कभी नहीं चलता(वह तो अपनी जगह स्थिर रहता है) । अपनी-अपनी कार्यसिद्धि के लिये इस रास्ते पर सभी चलते हैं, भले ही वे चोर(असत्कर्म करनेवाले) हों या शाह(सत्कर्म करनेवाले) हों । परन्तु ये सभी अज्ञानवश अपने चलन(अस्थिरता) को नहीं देखते, अपितु इस स्थिर मार्ग के विषय में चलने(अस्थिरता) की भ्रान्त धारणा बनाये रखते हैं ।
(तीसरा उदाहरण -) इसी प्रकार वायु के द्वारा हिलते हुए जल में अपने स्थिर प्रतिबिम्ब के विषय में भी भ्रांत धारणा बना कर प्रतिबिम्ब(छाया) को ही हिलता हुआ मानते हैं । ठीक इसी प्रकार(अध्यात्म-पक्ष में) वास्तव में आत्मा अचल है और देह का ही आगमन होता है । जैसे रास्ता स्थिर रहता है और सब प्राणी उस पर चलत हैं, परन्तु अज्ञानी लोग आत्मा को अस्थिर मानकर उसका आवागमन मान बैठते है ॥२॥
(१. प्रतिबिम्ब = सूर्य - चन्द्र के बिम्ब की तसवीर या छाया जो पानी में, घटों में दिखाई देती है । यह वेदान्त का प्रसिद्ध उदाहरण है कि आत्मा(सूर्य की तरह) एक है तो भी प्रतिबिम्ब की तरह घट-घट में भिन्न दिखती है ।)
(क्रमशः)

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