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卐 सत्यराम सा 卐
*दादू सबही वेद पुराण पढ़ि, नेटि नाम निर्धार ।*
*सब कुछ इन ही मांहि है, क्या करिये विस्तार ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
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*सुमिरण का अंग २०*
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षट् दर्शन नाम हि कहैं, नाम हि वेद पुरान ।
तो रज्जब नाम हि गहो, पाया भेद विनान१ ॥१३॥
षड् दर्शन(६ शास्त्र) वा नाथ, जंगम, सेवड़े, बौद्ध, सन्यासी, शेष, ये ६ के नाम स्मरण की प्रेरणा करते हैं और वेद पुराणादि सदग्रंथ भी नामस्मरण साधन को श्रेष्ठ कहकर उसके करने की प्रेरणा करते हैं । उक्त शास्त्रादि तथा सद्गुरु के उपदेश से हमने नाम स्मरण विषयक रहस्यमय विज्ञान१ प्राप्त कर लिया है । अत: साधक को नाम-स्मरण साधन ही करना चाहिये ।
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सब ही वेद विलोय कर, अंत दृढावें नाम ।
तो रज्जब जगदीश भज, इतना ही है काम ॥१४॥
सम्पूर्ण वेदों का मनन करके विद्वान् संत नामस्मरण रूप साधन ही दृढ़ता से करने की प्रेरणा करते हैं । तब जगदीश्वर का ही भजन करना चाहिये, साधक को अपने कल्याण के लिये नाम स्मरण रूप कार्य ही बहुत है ।
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साधू वेद बोल हि सु यूं, राम कहे सब कीन ।
जन रज्जब जग उद्धरहिं, जो जीव जगपति लीन ॥१५॥
संत तथा वेद ऐसा ही कहते हैं कि - जिसने राम का स्मरण कर लिया, उसने सब कुछ कर लिया । जो जीव जगतपति परमेश्वर के स्मरण में लीन होते हैं, वे जगत से पार हो जाते हैं ।
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रज्जब पैठे राम में, सो रट द्वारे होय ।
मिलबे को मारग यही, और न दूजा कोय ॥१६॥
जो भी राम के स्वरूप रूप धाम में प्रवेश करते हैं, वे राम स्मरण रूप द्वार से ही करते हैं, राम से मिलने का मार्ग यही है अन्य कोई भी नहीं है ।
(क्रमशः)
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