#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*मध्य का अँग १६*
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एक देश हम देखिया, तहं ॠतु नहिं पलटे कोइ
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हम दादू उस देश के, जहां सदा एक रस होइ ॥२२॥
२२ - २७ में निर्विकल्प समाधि में
अनुभूत ब्रह्म - देश का परिचय दे रहे हैं - हमने निर्विकल्प समाधि में अद्वैत
ब्रह्म रूप देश देखा है । वहां षट् ॠतु परिवर्तन वो अवस्था परिवर्तन नहीं होता, जहां पहुंचने पर साधक
एक रस होकर ही सदा रहता है । हम भी उसी देश के हैं ।
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एक देश हम देखिया, जहं बस्ती ऊजड़ नाँहिँ ।
हम दादू उस देश के, सहज रूप ता माँहिं ॥२३॥
जहां दैवी - गुण और आसुर - गुण रूप
ग्रामों का बसना उजड़ना नहीं होता तथा जिसमें रहने वाले का स्वरूप सहज निर्द्वन्द्व
होता है, वही
अद्वैत ब्रह्म - देश हमने निर्विकल्प समाधि में देखा है और हम उसी देश के हैं ।
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एक देश हम देखिया, नहिं नेड़े नहिं दूर ।
हम दादू उस देश के, रहे निरँतर पूर ॥२४॥
निर्विकल्प समाधि में हमने अद्वैत
ब्रह्म रूप देश देखा है । वह सबका निज होने से समीप वो दूर नहीं है । निरँतर सब में
परिपूर्ण रूप से रहता है । उसी देश के हम हैं।
(क्रमशः)
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