गुरुवार, 28 दिसंबर 2017

= मध्य का अँग =(१६/२२-२४)

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*मध्य का अँग १६* 
.
एक देश हम देखिया, तहं ॠतु नहिं पलटे कोइ ।
हम दादू उस देश के, जहां सदा एक रस होइ ॥२२॥
२२ - २७ में निर्विकल्प समाधि में अनुभूत ब्रह्म - देश का परिचय दे रहे हैं - हमने निर्विकल्प समाधि में अद्वैत ब्रह्म रूप देश देखा है । वहां षट् ॠतु परिवर्तन वो अवस्था परिवर्तन नहीं होता, जहां पहुंचने पर साधक एक रस होकर ही सदा रहता है । हम भी उसी देश के हैं ।
एक देश हम देखिया, जहं बस्ती ऊजड़ नाँहिँ ।
हम दादू उस देश के, सहज रूप ता माँहिं ॥२३॥
जहां दैवी - गुण और आसुर - गुण रूप ग्रामों का बसना उजड़ना नहीं होता तथा जिसमें रहने वाले का स्वरूप सहज निर्द्वन्द्व होता है, वही अद्वैत ब्रह्म - देश हमने निर्विकल्प समाधि में देखा है और हम उसी देश के हैं ।
एक देश हम देखिया, नहिं नेड़े नहिं दूर ।
हम दादू उस देश के, रहे निरँतर पूर ॥२४॥
निर्विकल्प समाधि में हमने अद्वैत ब्रह्म रूप देश देखा है । वह सबका निज होने से समीप वो दूर नहीं है । निरँतर सब में परिपूर्ण रूप से रहता है । उसी देश के हम हैं।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें