रविवार, 31 दिसंबर 2017

= ३५ =


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*कर्म फिरावैं जीव को, कर्मों को करतार ।*
*करतार को कोई नहीं, दादू फेरनहार ॥* 
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साभार ~ स्वामी सौमित्राचार्य

“प्रपत्ति”
भारत-भागीरथी
# देवी उमा – ‘कुछ लोगों की मान्यता है कि जगत में दैव की प्रेरणा से ही सबकी कर्म में प्रवृत्ति होती है. वहीं दूसरी ओर कुछ लोग क्रिया को प्रत्यक्ष देखकर ऐसा मानते हैं कि चेष्टा से ही सबकी प्रवृत्ति होती है, दैव से नहीं. इस संशय का निवारण कीजिये.’
# श्री महेश्वर – ‘मनुष्यों में दो प्रकार का कर्म देखा जाता है. इनमें एक तो पूर्वकृत कर्म है और दूसरा इहलोक में किया गया है.’
- ‘कृषि में जो जुताई, बोवाई, रोपनी, कटनी तथा ऐसे ही और भी जो कार्य देखे जाते हैं, वे सब मानुष कहे गए हैं. दैव से उस कर्म में सफलता और असफलता होती है.’
- ‘उत्तम प्रयत्न करने से कीर्ति प्राप्त होती है और बुरे उपायों के अवलंब से अपयश.’
- ‘बीज का रोपना और काटना आदि मनुष्य का काम है परन्तु समय पर वर्षा होना, बोवाई का सुन्दर परिणाम निकलना, बीज में अंकुर उत्पन्न होना और शस्य का श्रेणीबद्ध होकर प्रकट होना इत्यादि कार्य देव सम्बन्धी बताये गए हैं.’
देखिये, हमने जो पिछले जन्मों में कर्म किए हैं, उसी का फल आज का ‘दैव’(भाग्य) है और आज जो कर रहे हैं, वही ‘मानुष’ है. ‘फल’ को झुटलाना हमारे बस की बात नहीं इसलिए वो दैव है. आज का कर्म अपने हाथ में है, इसलिए ‘मानुष’ है. पर ध्यान रहे कल का मानुष आज का दैव है और आज का मानुष कल का दैव. अब आज तो शास्त्रों का आश्रय लेकर अनुकूल कर्म करो तो कल का दैव अनुकूल होगा.
“स्वामी सौमित्राचार्य”

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