卐 सत्यराम सा 卐
*सतगुरु की समझै नहीं, अपणै उपजै नांहि ।*
*तो दादू क्या कीजिए, बुरी बिथा मन मांहि ॥*
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साभार ~ Gunjan Gupta
संसार में जितने भी महापुरुष हुए हैं तथा जितने देवताओं की कल्पना की गई है, वह सब के सब वर्तमान महापुरुष(संत) के शरीर में निवास करते हैं, इसलिए वर्तमान को पकड़ लेने से अतीत के सभी महापुरुषों की कृपा अनायास ही मिल जाती है, ऐसे भक्तों का किसी काल में विनाश नहीं है, जो एक परमात्मा में अटूट आस्था के साथ महापुरुष की सेवा में तत्पर हैं |
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भौतिक क्षेत्र में मनुष्य दुख से अपनी यात्रा शुरू करता है और उसका अंत दुख में ही होता है, भगवत पथ में कठिनाई एवं दुख होता है तो लेकिन परिणाम भी शाश्वत सुख एवं शांति है|
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सार की किसी भी प्रकार की उपलब्धि में, मनुष्य की समस्याओं का हल नहीं है न दुख से छुटकारा है |
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यदि शिष्य गण अपने -अपने स्वभाव एवं अहं वश आपस में तथा प्रकृति में कहीं भी उलझते हैं, तो सिद्ध है कि गुरु के उपदेश को नहीं सुना है, ना ही दुखों से छूटने की अभिलाषा है, इसलिए गुरु का उपदेश सुनकर भी आचरण नहीं कर पाते हैं |
श्री महा योगेश्वर परमहंस स्वामी श्री अड़गड़ानंद जी महाराज जी
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