#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*दादू नीका नांव है, सौ तू हिरदय राखि ।*
*पाखंड प्रपंच दूर करि, सुन साधुजन की साखि ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
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*सुमिरण का अंग २०*
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ररै रीझ्या राम जी, अलिफ अलह अस नाँव ।
रज्जब दोनों एक हैं, मन वच कर्म करि गाव ॥२५॥
राम मंत्र के पहले "राँ" के स्मरण से रामजी और अल्लाह के पहले "अ" से अल्लाह प्रसन्न होते रहे हैं, नाम का महत्व ऐसा ही है । राम और अल्लाह ये शब्द ही तो हैं, इनका नामी ईश्वर एक ही है, अत: मन वचन कर्म से नाम का गायन करते रहना चाहिये ।
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रज्जब राम रहीम कहि, आदि पुरुष कर याद ।
सदा सनेही सुमिरिये, जन्म न जावे बाद ॥२६॥
दयालु राम का नाम मुख से बोल, आदि पुरुष प्रभु का स्मरण कर सदा अपने प्रेमी प्रभु का स्मरण करते रहना चाहिये, जिससे यह मानव जन्म व्यर्थ न जाय ।
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अल्लह अल्लह करत ही, अलह लह्या सो जाय ।
रज्जब अज्जब हरफ है, हिरदै हित चित लाय ॥२७॥
अल्लह, अल्लह नाम करते करते जो न प्राप्त होने योग्य है वह अल्लाह भी प्राप्त हो जाता है यह अल्लाह नाम अदभुत अक्षरों से बना है । अत: मुसल्मानों के हृदय में प्रेमपूर्वक चित्त लगा कर स्मरण कहते रहना चाहिये।
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सकल नाम जिव के सगे, जाप जिकर रट जंत ।
रज्जब राम रहीम रत, मिल्या सु निर्मल मंत ॥२८॥
चिन्तन करने से ईश्वर के सभी नाम जीव के हितकारक संबन्धी हैं, अत: हे जीव ! नाम जाप करके, नाम संबन्धी चर्चा करके, नाम की रट लगा करके, दयालु राम में अनुरक्त हो, संत शास्त्रों से यही निर्मल और सुन्दर परामर्श मिला है ।
(क्रमशः)
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