सोमवार, 1 जनवरी 2018

= मध्य का अँग =(१६/३१-३३)

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐

*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*मध्य का अँग १६*
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घर वन माँहीं सुख नहीं, सुख है सांई पास ।
दादू तासौं मन मिल्या, इन तैं भया उदास ॥३१॥
घर वो वन में सुख नहीं है, सुख तो भजन द्वारा परमात्मा के समीप रहने में है । अत: इन घर, वनादि से विरक्त होकर हमारा मन तो चिन्तन द्वारा परमात्मा से मिल रहा है ।
वैरागी वन में वसे, घरबारी घर माँहिं ।
राम निराला रह गया, दादू इनमें नाँहिं ॥३२॥
विरक्त वन में रहते हैं और गृहस्थ घर में । यदि वन वो घर में निवास करने से राम मिलें तो सभी विरक्तों को वो सभी गृहस्थों को मिल जाना चाहिए । राम तो घर - वनादि में व्यापक रह कर भी इनसे अलग है । वह मध्य निष्पक्ष ब्रह्म भक्ति साधना द्वारा ही मिलता है ।
*सुमिरण नाम निस्सँशय*
दादू जीवन मरण का, मुझ पछतावा नाँहिं ।
मुझ पछतावा पीव का, रह्या न नैनहुं माँहिं ॥३३॥
३३ - ३५ में सँशय रहित नाम - स्मरण की निष्ठा दिखा रहे हैं - अधिक आयु से कमजोर होकर जीने का वो शीघ्र मरने का मुझे दु:ख नहीं, किन्तु मुझे तो यही अनुताप है कि - मेरे अन्त: - नेत्रों से परमात्मा का साक्षात्कार नहीं हो रहा है ।
(क्रमशः)

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