#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*मध्य का अँग १६*
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एक देश हम देखिया, जहं निश दिन नाँहीं घाम ।
हम दादू उस देश के, जहं निकट निरंजन राम ॥२५॥
जहां इन्द्रिय मन का अज्ञान रूप रात्रि, ज्ञान रूप दिन, अज्ञान जन्य दु:ख रूप घाम, इन्द्रिय ज्ञान जन्य सुखरूप छाया नहीं है और जहां निरंजन राम अति निकट निज स्वरूप से प्रतीत होते हैं, वह निर्विकल्प समाधि रूप एक देश हमने देखा है और हम उसी देश के हैं ।
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बारह मासी नीपजे, तहां किया परवेश ।
दादू सूखा ना पड़े, हम आये उस देश ॥२६॥
जहां बारह मास ही परमानन्द रूप अन्न उत्पन्न होता रहता है, अज्ञान रूप अनावृष्टि कभी नहीं होती, हमने उसी निर्विकल्प समाधि - देश में आकर ब्रह्म में प्रवेश किया है ।
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जहं वेद कुरान की गम नहीं, तहां किया परवेश ।
तहं कछु अचरज देखिया, यहु कछु औरे देश ॥२७॥
जिस निर्विकल्प समाधि - भूमि के ब्रह्म - देश में हमने आत्म रूप से प्रवेश किया है वहां एकरसता, सत्यतादि आश्चर्य देखने में आते हैं । यह देश मायिक सँसार से भिन्न ही है । इसमें वेद एवँ कुरान की भी गति नहीं है ।
(क्रमशः)
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