शनिवार, 30 दिसंबर 2017

= सुमिरण का अंग २०(२१-४) =

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卐 सत्यराम सा 卐
*हिरदै राम रहै जा जन के, ताको ऊरा कौण कहै ।*
*अठ सिधि, नौ निधि ताके आगे, सनमुख सदा रहै ॥*
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**श्री रज्जबवाणी** 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi 
*सुमिरण का अंग २०*
एक अलिफ में सब इलम१, कुल२ कतेब कुरान । 
हत्या३ तज हाफिज४ भया, जन रज्जब सब जान ॥२१॥ 
सबसे प्रथम एक ऊँ अक्षर उत्पन्न होता है वही ईश्वर का आदि नाम है और वेदादि संपूर्ण विद्यायें सूक्ष्म रूप से उसमें रहती हैं, वैसे ही फारसी का प्रथम अक्षर अलिफ है, ईश्वर का पहला नाम है उस एक अक्षर में संपूर्ण विद्यायें१ तथा कुरानादि सब२ किताबें सूक्ष्मरूप से रहती हैं, ईश्वर नाम जप से ही प्राणी सब कुछ जान जाता है और हिंसा३ त्यागकर सबका संरक्षक४ बन जाता है । 
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सब इल्मों शिर अलिफ१ है, कुल कामिल२ इस माँहिं । 
तू तामें पैवस्त३ हो, और कह्या कुछ नाँहिं ॥२२॥ 
संपूर्ण विद्याओं में शिरोमणि ईश्वर का पहला नाम ही है, इस नाम१ में संपूर्ण प्रकार की पूर्णता२ है । हे साधक ! तू नाम-स्मरण रूप साधना में ही प्रवेश३ कर ईश्वर साक्षात्कार के लिये अन्य कोई भी साधन नाम से श्रेष्ठ नहीं कहा गया है । 
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रंकार अलिफ चहुँ१ वेद में, है आतम अरवाहि२ । 
रट रज्जब कण लीजिये, भूल न कूकस३ खाहि ॥२३॥ 
राम मंत्र का पहला बीज "राँ " उसका लक्ष्य अर्थ रूप ब्रह्म चारों१ वेदों में व्याप्त है और संपूर्ण जीवात्माओं२ में आत्म रूप से है । अत: हे साधक ! "राँ" का स्मरण करके ब्रह्म रूप कण को प्राप्त कर और विषयरूप भूसे३ को भूल से भी मत खा । 
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रं कार अलिफ रोटी बड़ी, रज्जब रुचि सौं खाय । 
भूख भंग भगवंत लग, यह धापण की राह ॥२४॥ 
राम मंत्र का पहला "राँ" चिन्तन द्वारा तृप्ति का हेतु होने से महान रोटी के समान है, जो प्रीतिपूर्वक खाता है, अर्थात चिन्तन करता है । उसकी आशा रूप भूख नष्ट हो जाती है और वह भगवान के स्वरूप में अभेद भाव से लग जाता है । जीवात्मा के तृप्त होने का मार्ग यह स्मरण ही है । 
(क्रमशः)

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