सोमवार, 1 जनवरी 2018

= सुमिरण का अंग २०(२९-३२) =

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卐 सत्यराम सा 卐
*दादू सिरजनहार के, केते नाम अनन्त ।*
*चित आवै सो लीजिये, यों साधु सुमरैं संत ॥*
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**श्री रज्जबवाणी** 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi 
*सुमिरण का अंग २०*
नाम अनेकों एक है, तो भज राम रहीम । 
ज्यों ज्यों सुमिरै सांइयाँ, जन रज्जब सु फहीम१ ॥२९॥ 
एक ईश्वर के नाम अनेक हैं, तब नामों में भेद बुद्धि न रख कर दयालु राम के कोई भी नाम का स्मरण करना चाहिये । ज्यों ज्यों स्मरण बढ़ता जायगा त्यों त्यों ही समझदार१ होता जायगा और प्रतिष्ठित हो जायगा । 
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नाम अनन्त अनन्त के, सो सब एक समानि । 
रज्जब जाणे सो सुमिर, मन वच कर्म उर आनि ॥३०॥ 
अनन्त स्वरूप परमात्मा के नाम भी अनन्त है और निष्काम भाव से स्मरण करने से सभी ब्रह्म प्राप्ति रूप समान फल देते हैं, अत: मन, वचन, कर्म से हृदय में नाम का स्मरण करके उस पर ब्रह्म के स्वरूप को जानने का यत्न करो । 
नाम अनेकों एक गुण, ज्यों बहु बूंद हुँ वारि१ । 
जन रज्जब जान रु कही, नर निरखहु सु निहारि॥३१ ॥ 
जैसे बहुत जल बिन्दुओं में एक जल१ होता है, वैसे ही ईश्वर के नाम अनेक हैं किन्तु उनमें स्मरण करने पर इच्छा पूर्ति करना रूप गुण एक ही है । यह बात हमने अच्छी प्रकार जानके कही है, हे साधक नर ! तू भी ध्यानपूर्वक देख । 
ज्यों आतम अरवाह इक, त्यों ही राम रहीम । 
उदक आब कछु द्वै नहीं, रज्जब समझ फहीम१ ॥३२॥ 
जैसे उदक और आब दोनों जल के ही नाम है, आत्मा और अरवाह दोनों आत्मा के ही नाम है । वैसे ही राम और रहीम दोनों ईश्वर के ही नाम हैं । ज्ञानीजनों१ की यही समझ है ।
(क्रमशः)

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