🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= सहजानन्द(ग्रन्थ २७) =*
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*ना मैं कुम्भक त्राटक लाऊं ।*
*नौलि भुवंगम दूरि बहाऊं ॥*
*नेती धोती करौं न कर्म्मा ।*
*उलटी पलटी इ सब भर्म्मा ॥११॥*
(ज्ञानप्राप्ति के बाद) कुम्भक, त्राटक विधि की भी मुझे कोई आवश्यकता नहीं रह गयी । हठ योग नौलि, नेति धोति आदि से भी मुझे कोई लाभ नहीं है । मैंने इन सब विधियों को आजमाकर(अभ्यास कर) देख लिया है । ये सब भ्रममात्र हैं । इनसे ज्ञानमार्ग का सीधा सम्बन्ध नहीं हैं ।(क्योंकि देखा गया है कि जिज्ञासु प्रारम्भ में तो इनका ज्ञानप्राप्ति के लिए उपयोग करना चाहता है, परन्तु बाद में वह इन्हीं में उलझा रह जाता है और तत्व ज्ञान उससे कोसों दूर रह जाता है) ॥११॥
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*= दोहा =*
*जोई आरंभ१ कीजिये, सोई शंसै काल ।*
*सुन्दर सहज सुभाव गहि, मेट्यौ सब जंजाल ॥१२॥*
(१. आरम्भ=कर्म)
वास्तविकता यह है कि सभी कर्म(आरम्भ) दोषयुक्त हैं, मौत की और ले जाने वाले हैं । “(सर्वारम्भा हि दोषण धूमेनाग्निरिवावृताः” - भ० गी० अ० ४- १६) अतः महात्मा कहते हैं - सहज समाधि सबसे सरल विधि है, जिससे यह सम्पूर्ण दृश्यमान् जगत् का मायाजाल स्वतः विनष्ट हो जाता है ॥१२॥
(क्रमशः)
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