卐 सत्यराम सा 卐
*जहँ तहँ विषय विकार तैं, तुम ही राखणहार ।*
*तन मन तुम को सौंपिया, साचा सिरजनहार ॥*
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साभार ~ Vidya Bhaskar Dwivedi
**जय श्री सीताराम जी**
**प्रार्थना**
हे नाथ ! आपसे मेरी प्रार्थना है कि आप मुझे प्यारे लगें।केवल यही मेरी माँग है और कोई माँग नहीं ।
हे नाथ ! अगर मैं स्वर्ग चाहूँ तो मुझे नरक में डाल दें, सुख चाहूँ तो अनन्त दुखों में डाल दें, पर आप मुझे प्यारे लगें ।
हे नाथ ! आपके विना मैं रह न सकूँ, ऐसी व्याकुलता आप दे दें ।
हे नाथ ! आप मेरे हृदय में ऐसी आग लगा दें कि आपकी प्रीति के विना मैं जी न सकूँ ।
हे नाथ ! आपके विना मेरा कौन है? मैं किससे कहूँ और कौन सुने?
हे मेरे शरण्य ! मैं कहाँ जाऊँ? क्या करूँ? कोई मेरा नहीं ।
मैं भूला हुआ कइयों को अपना मानता रहा । उनसे धोखा खाया, फिर भी धोखा खा सकता हूँ, आप बचायें।
हे मेरे प्यारे ! हे अनाथनाथ ! हे अशरणशरण ! हे पतितपावन ! हे दीनबन्धो ! हे अरक्षितरक्षक ! हे आर्तत्राणपरायण ! हे निराधार के आधार ! हे अकारण करुणावरुणालय ! हे साधनहीन के एक मात्र साधन ! हे असहाय के सहायक ! क्या आप मेरे को जानते नहीं, मैं कैसा भग्नप्रतिज्ञ, कैसा कृतघ्न, कैसा अपराधी, कैसा विपरीतगामी, कैसा अकरणकरण परायण हूँ । अनन्त दुखों के कारणस्वरूप भोगों को भोग कर -- जानकर भी आसक्त रहने वाला, अहित को हितकर मानने वाला, बार बार ठोकरें खाकर भी नहीं चेतनेवाला, आपसे विमुख होकर बार बार दुख पाने वाला, चेतकर भी न चेतने वाला, जानकर भी न जानने वाला मेरे सिवा आपको ऐसा कौन मिलेगा ?
प्रभो ! त्राहि माम् ! त्राहि माम् ! पाहि माम् ! पाहि माम् । हे प्रभो ! हे विभो ! मैं आँख पसारकर देखता हूँ तो मन-बुद्धि -प्राण-इन्द्रियाँ और शरीर भी मेरे नहीं हैं, फिर वस्तु व्यक्ति आदि मेरे कैसे हो सकते हैं ! ऐसा मैं जानता हूँ, कहता हूँ, पर वास्तविकता से नहीं मानता। मेरी यह दशा क्या आपसे किंचिन्मात्र भी कभी छुपी है ? फिर हे प्यारे ! क्या कहूँ ? हे नाथ ! हे नाथ ! हे मेरे नाथ ! हे दीनबन्धो ! हे प्रभो ! आप अपनी तरफ से शरण में ले लें । बस, केवल आप प्यारे लगें ।
(स्वामी रामसुखदास जी)
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