रविवार, 7 जनवरी 2018

= मध्य का अँग =(१६/४६-८)

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐

*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*मध्य का अँग १६*
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भयभीत भयानक ह्वै रहे, देख्या निर्पख अँग ।
दादू एकै ले रह्या, दूजा चढै न रँग ॥४६॥
हमारे निर्गुण निष्पक्ष साधन स्वरूप को देख कर कुछ लोग तो यह समझकर कि "यह कैसे हो सकता है", भयभीत हो रहे हैं और कुछ लोग यह समझकर कि "यह मार्ग दोनों धर्मों से भिन्न होने से अच्छा नहीं", भयानक हो रहे हैं । किन्तु हमने तो निष्पक्ष होकर उपास्य रूप से एक परब्रह्म को ही ग्रहण किया है । हमारे दूसरा रँग नहीं चढ़ सकता ।
जाने बूझे साच है, सब को देखन धाइ ।
चाल नहीं सँसार की, दादू गह्या न जाइ ॥४७॥
निष्पक्ष मध्य - मार्ग के सँतों को उनके वैराग्यादि गुणों द्वारा जानते हैं और यह समझ कर कि ये सच्चे सँत हैं, उनके दर्शन करने भी सब जाते हैं किन्तु उनका निष्पक्ष मध्य - मार्ग, जो सँसार के मत - मतान्तरों के बाह्य - भेषादि चिन्ह मूर्ति - पूजादि न होने से, लोगों द्वारा ग्रहण नहीं किया जाता ।
दादू पख काहू के ना मिले, निर्पख निर्मल नाँव ।
सांई सौं सन्मुख सदा, मुक्ता सब ही ठाँव ॥४८॥
सँत किसी के मत रूप पक्ष में नहीं मिलते । वे तो सर्व - मतों से निष्पक्ष रह कर, निर्मल नाम स्मरण द्वारा सदा परमात्मा के सन्मुख रहते हैं । इस प्रकार मत - मतान्तरों के पक्ष से मुक्त होकर लोक - कल्याणार्थ सभी स्थानों में विचरते हैं ।
(क्रमशः)

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