#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*दादू राम नाम निज औषधि, काटै कोटि विकार ।*
*विषम व्याधि थैं ऊबरै, काया कंचन सार ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
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*सुमिरण का अंग २०*
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सब ठाहर सु उपाधि है, सुमिरन में सु समाध ।
रज्जब सु गुरु प्रसाद सौं, सो ठाहर लाध ॥४५॥
सभी सांसारिक व्यवहार रूप स्थानों में नाना प्रकार की उपाधियाँ भासती हैं, किन्तु हरि स्मरण में स्थित रहने से समाधि होकर परम सुख प्राप्त होता है, अत: गुरु के कृपा प्रसाद से उस हरि स्मरण रूप स्थान में ही सुख मिलता है ।
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सुमिरण सितिया१ पीजिये, तो नख शिख शीतल होय ।
दूजी ठाहर दहणि२ सब, रज्जब देखो जोय ॥४६॥
हरि-स्मरण रूप मिश्री१ का पान करोगे, तो तुम्हारे शरीर में नख से शिख पय्यर्न्त शीतलता का अनुभव होगा । अन्य सांसारिक व्यवहार रूप स्थानों में तो सब प्रकार जलन२ ही होती है । यह तुम स्वंय ही अनुभव करके देख सकते हो ।
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सुमिरण शहद सु पीजिये, प्राण पिंड द्वे पौष ।
रज्जब रोग कहा रहे, भागे अंतर दोष ॥४७॥
हरि-स्मरण रूप शहद को पीना चाहिये, इससे सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर दोनों का पोषण होता है । जब उक्त औषधि से भीतर का दोष नष्ट हो जाता है, तब रोग कहां रहता है ?
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सुख अनन्त हरि नाम में, जाका वार न पार ।
जन रज्जब आनन्द ह्वै, सुमिर्यों सिरजन हार ॥४८॥
हरि-नाम-स्मरण रूप साधन में स्थित रहने से हमें जिसका आदि अन्त भी नहीं ज्ञात होता है ऐसा अनन्त सुख प्राप्त होता है । सृष्टिकर्त्ता ईश्वर का स्मरण करने से सभी को सदा आनन्द ही होता है ।
(क्रमशः)
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