🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= सहजानन्द(ग्रन्थ २७) =*
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*पुहमी२ दैव३ न दहिना वर्त्ता४ ।*
*नागें पाँऊं फिरौं न मरता ॥*
*दुःख लालेश और बहुतेरा ।*
*तिन सौं मन मानैं नहिं मेरा ॥१७॥*
(२. पहुमी=पृथ्वी ।)(३. दैव=देवता ।)(४. दहिना वर्त्ता=दक्षिणावर्त्त, परिक्रमा ।)(४. पृथ्वी परिक्रमा, सर्व तीर्थ करना ।)
न मैं देवदर्शन के लिये तीर्थाटन हेतु पृथ्वी की(दक्षिणावर्त या वामावर्त) परिक्रमा ही करता हूँ । न नंगे पाँव तीर्थयात्रा करता हूँ ।(कहाँ तक वर्णन करूँ ?) शरीर को कष्ट देने वाली जितनी भी तपस्याएं शास्त्र में वर्णित हैं वे तत्वज्ञान की प्राप्ति में सहायक होंगी - इस पर मेरा मन(विशवास) नही जमता ॥ १७ ॥
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*= दोहा =*
*सतगुरु कहि समुझाइया, निज मत बारंबार ।*
*सुन्दर कष्ट कहा करै, पाया सहज विचार ॥१८॥*
इस तरह सद्गुरु ने कृपा कर बार-बार अपने मत का उपदेश किया । उस उपदेश के प्रभाव से भगवत्प्राप्तिहेतु सहज समाधि में निरत रहता हूँ । अब मुझे इसके लिये शरीर को कष्ट देकर कोई तपस्या करने की आवश्यकता नहीं रह गयी ॥१८॥
(क्रमशः)
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