#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*जीवित मृतक का अँग २३*
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झूठा गर्व गुमान तज, तज आपा अभिमान ।
दादू दीन गरीब ह्वै, पाया पद निर्वाण ॥७॥
जो सब प्रकार के अभिमान को त्याग कर, लौकिक दीन प्राणियों से भी अति गरीब होकर रहा है, उसी ने काल कर्म के बाणाघात से रहित मुक्ति पद प्राप्त किया है ।
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*जीवित - मृतक*
जीवित - मृतक की यही निशानी,
दुर्बल देही निर्मल वाणी ।
दादू भाव भक्ति दीनता अँग,
प्रेम प्रीति सदा तिहिं संग ॥८॥
८ - १२ में जीवन्मुक्त सम्बन्धी विचार कर रहे हैं, जिसके हृदय में श्रद्धा, सेवा - भाव, दीनता, भगवत् - प्रेम, सँतों में प्रीति रहती है, भगवान् उसके संग रहते हैं ।
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तब साहिब को सिजदा किया, जब शिर धरा उतार ।
यों दादू जीवित मरे, हिर्स हवा को मार ॥९॥
जब सब प्रकार के अभिमान रूप शिर को उतार कर जिस साधक ने परमात्मा की वँदना भक्ति की है, तब ही वह अन्य विषयों की तृष्णा तथा स्वर्गादि भोगों की वासना को नष्ट करके जीवन्मुक्त हुआ है । ऐसे ही जीवितावस्था में मरण होता है ।
(क्रमशः)
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