शनिवार, 26 मई 2018

= त्रिविध अन्तःकरण भेद(ग्रन्थ ३७/३-४) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
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*=त्रिविध अन्तःकरण भेद(ग्रन्थ ३७)=*
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*= बुद्धिविषयक प्रश्न =*
*बहिर्बुद्धि अब कहौ गुसांई ।*
*अंतर्बुद्धि कहौ किहिं ठांई ॥*
*परम बुद्धि का कहौ बिचारा ।*
*सुन्दर पूछै शिष्य तुम्हारा ॥३॥*
(हे गुरुदेव ! आपने मन के भेद बहुत सरल रीति से समझा दिये,) अब कृपया बुद्धि, के विषय में भी - बहिर्बुद्धि, अन्तर्बुद्धि एवं परमबुद्धि ये तीन भेद क्यों है ? यह मुझ शिष्य को बताने का कष्ट करें ॥३॥
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*= उत्तर =*
*बहिर्बुद्धि रज तम गुण रक्ता ।*
*अंतर्बुद्धि सत्व आसक्ता ॥*
*परम बुद्धि त्रय गुण तें न्यारी ।*
*सुन्दर आतम बुद्धि विचारी ॥४॥*
बुद्धि की वह अविद्याग्रस्त कलुषितावस्था, जिसमे रह कर वह रज, तम गुणों से संयुक्त रहती है, बहिर्बुद्धि कहलाती है ।
‘अन्तर्बुद्धि’ बुद्धि की वह शुद्धावस्था है जब वह सत्वगुणावृत हो कर गुरुपदेश के सहारे परम तत्व का चिन्तन करती है और परमबुद्धि वह पवित्र एवं निर्मल अवस्था है जिसमें तत्त्वसाक्षात्कार के बाद आत्मा से तादात्म्य स्थापित हो जाता है ॥४॥
(क्रमशः)

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