बुधवार, 30 मई 2018

= ११३ =


卐 सत्यराम सा 卐
*देखा देखी सब चले, पार न पहुँच्या जाइ ।*
*दादू आसन पहल के, फिर फिर बैठे आइ ॥* 
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एक छोटा सा तालाब था। उस तालाब में तीन मछलियां थीं। एक मछली का नाम बुद्धि था। दूसरी मछली का नाम अर्द्धबुद्धि था। तीसरी मछली का नाम अबुद्धि था। तीन ही मछलियां थीं उस छोटे से तालाब में। बड़ी शांति का उनका जीवन था। लेकिन एक दिन एक मछुआरा, मछली पकड़ने वाला आदमी उस तालाब के पास पहुंच गया। उस तालाब में बड़ी चिंता छा गई, उदासी छा गई। 
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मनुष्य जहां भी पहुंच जाता है वहां उदासी और चिंता छा जाती है। प्रकृति बड़ी शांत थी, जब तक आदमी नहीं रहा होगा। और प्रकृति शायद फिर शांत हो जाएगी जिस दिन आदमी नहीं रह जाएगा। और आदमी पूरे उपाय कर रहा है कि जल्दी ही वह शांति का दिन आ जाए। उस तालाब में भी वैसी अशांति छा गई उस मछुए को आया हुआ देख कर।
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बुद्धि नाम की मछली ने सोचा कि क्या करना चाहिए? छोटा सा तालाब था, मछुए के पास जाल बड़ा था। बचना बहुत कठिन था। उस मछली ने एक उपाय किया। वह बुद्धि नाम की मछली छलांग लगा कर मछुए के पैरों के पास जा गिरी। मछुआ बहुत हैरान हुआ कि मछली और खुद अपने आप मछुए के पास आ गई। उसने मछली को उठा कर देखा। लेकिन वह मछली श्वास बंद किए हुए थी। मछुए ने समझा कि वह मरी हुई है। उसने वापस उसे तालाब में फेंक दिया। वह मछली मुर्दे की भांति डूब गई और नीचे तलहटी में बैठ गई।
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अर्द्धबुद्धि नाम की जो मछली थी, वह हमेशा इस बुद्धि नाम की मछली का अनुकरण करती थी। वह उसकी फालोअर थी,वह उसकी अनुयायी थी। उसने सोचा कि यह तो बड़ी अच्छी तरकीब है। आदमी को भी धोखा दिया जा चुका। उसने भी छलांग लगाई, और वह भी जाकर मछुए के पैर के पास गिर पड़ी। मछुआ तो चकित रह गया कि आज क्या हो गया है मछलियों को? खुद छलांग लगा कर मछुए के पास आ रही हैं। उसने इस मछली को उठाया, लेकिन उसकी श्वास चल रही थी। उसे पता भी नहीं था कि पहली मछली ने श्वास नहीं ली थी।
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अनुयायियों को कभी पता नहीं रहता कि महावीर ने क्या किया। बुद्ध ने क्या किया। क्राइस्ट ने क्या किया। उनके भीतर क्या हुआ इसका किसी को कोई पता नहीं है। यह हो भी नहीं सकता। मछली ने छलांग लगाई यह तो दिखाई पड़ गया,लेकिन मछली ने भीतर क्या किया? जीवन के साथ क्या किया? मछुए ने कहा, अरे यह तो जिंदा है। उसने उसे अपने झोले में डाल लिया। लेकिन वह मछुआ इतना हैरान हो गया था मछलियों को उछलते देख कर कि झोले का मुंह बंद करना भूल गया। मछली तो बहुत घबड़ाई कि यह तो बड़ा धोखा हो गया। लेकिन झोले का मुंह खुला था, उसने छलांग लगाई, वह पानी में वापस जा गिरी। वह भी जाकर नीचे बैठ गई। बुद्धि नाम की मछली से उसने जाकर पूछा कि मैं तो फंस गई थी। उस बुद्धि नाम की मछली ने कहा, अनुयायी हमेशा फंस जाते हैं।
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तीसरी मछली थी अबुद्धि। वह अनुयायी की भी अनुयायी थी। फालोअर की भी फालोअर थी। उसने अर्द्धबुद्धि को उचकते देखा था, उसने भी छलांग लगाई और मछुए के पैर में जा गिरी। मछुआ तो हैरान ही हो गया! ऐसा तो कभी सुना भी नहीं था। उसने मछली अब देखी भी नहीं उठा कर कि उसकी श्वास भी चल रही है कि नहीं। झोले के अंदर डाली और झोले का मुंह बंद कर लिया। तो वह तीसरी मछली वापस नहीं लौट सकी।
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आदमी के साथ भी करीब-करीब ऐसा हुआ है। कुछ लोग तो वे लोग हैं, जो अपनी प्रतिभा अपनी बुद्धि से जीते हैं और जीवन का साक्षात करते हैं। कुछ लोग वे हैं जो उनका अनुगमन करते हैं। कुछ लोग और हैं जो अनुयायियों का भी अनुगमन करते हैं। इन तीसरे लोगों का तो कोई भी भविष्य नहीं है। दूसरे लोगों का भी जीवन बड़ी कठिनाइयों में, व्यर्थ की कठिनाइयों में पड़ जाता है।
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केवल पहले तरह के लोग ठीक से जी पाते हैं और जीवन को अनुभव कर पाते हैं। और उस मछली का नाम था अबुद्धि। गुरु उसका अनुयायी और उसका अनुयायी--उसका नाम था अबुद्धि। हमारा नाम क्या होगा? हमारे गुरुओं को हुए हजारों साल हो चुके। उनके अनुयायी, उनके अनुयायी, उनके अनुयायी, उनके अनुयायी। ऐसा हजारों पीढ़ियां हो गई अनुयायियों की। हम उन अनुयायियों के अनुयायी हैं।
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हमें तो अबुद्धि भी नहीं कहा जा सकता। हम तो वह सीमा भी बहुत पहले पार कर चुके हैं। और अगर इतनी जड़ता दुनिया में पैदा हुई है, तो इसका और कोई कारण नहीं है: जड़ता पैदा होगी; अनुगमन जड़ता लाता है। फालोइंग किसी के पीछे जाना अपने जीवन को खोना है। अपने जीवन का साक्षात किसी के पीछे जाने से कभी भी नहीं होता। अपने जीवन का साक्षात तो स्वयं की सारी प्रतिभा, स्वयं की सारी शक्ति, स्वयं की सारी क्षमता और पात्रता को विकसित करने से होता है।
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किसी के पीछे जो जाता है, पहली बात, उसने आत्मविश्वास खो दिया। दूसरे का विश्वास केवल वही करता है, जिसे स्वयं पर विश्वास नहीं होता। मैं निरंतर कहता हूं कि किसी पर विश्वास मत करो। तो लोग समझते हैं कि शायद मैं विश्वास का विरोधी हूं। जब मैं कहता हूं कि किसी पर विश्वास मत करो,तो मेरा सीधा मतलब है अपने पर विश्वास करो। जो आदमी दूसरे पर विश्वास करता है, वह आत्म अविश्वासी है। वह खुद पर विश्वास नहीं करता है।
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osho

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