सोमवार, 28 मई 2018

= ११० =



卐 सत्यराम सा 卐
*दादू देखौं निज पीव को, दूसर देखौं नांहि ।*
*सबै दिसा सौं सोधि करि, पाया घट ही मांहि ॥* 
============================
साभार ~ oshoganga.blogspot.com

खोज से परमात्मा कभी नहीं मिलता, खोज-२ कर इतना ही ज्ञात होता है कि खोज व्यर्थ है। खोजते-२ एक दिन किसी क्षण खोज गिर जाती है, खोज के गिरते ही परमात्मा से मिलन हो जाता है। भगवान बुद्ध लगातार छः वर्षों तक खोजते रहे, अथक परिश्रम किया; बहुत से गुरुओं के पास गए, और जिस गुरु ने जो कहा वैसा-२ ही किया। उनसे बड़ा खोजी मिलना दुर्लभ है।
.
गुरुओं ने जैसा-२ कहा, ठीक वैसा ही किया। गुरु भी भगवान बुद्ध से थक गए।क्योंकि उनसे, जो आज्ञा का उल्लंघन करते हैं; उनसे गुरु कभी नहीं थकते। क्योंकि सदा ही तब गुरुओं के पास ये कहने को शेष रहता है कि तुम आज्ञा ही नहीं मान रहे हो। इसीलिये यदि कुछ घटित नहीं हो रहा, तो हम क्या करें? लेकिन बुद्ध के साथ गुरुओं को समस्या हो गई। जो उन्होंने कहा, बुद्ध ने ठीक वैसा ही किया। अंत में सभी गुरुओं ने भगवान बुद्ध से हाथ जोड़ लिए कि कहीं और जाओ, हम जो बता सकते थे; सब बता दिया।
.
सबका एक ही जवाब था कि इससे ज्यादा हमें नहीं घटा, इसलिए अब क्या छिपाना; तुम्हें भी घटित नहीं हो सकेगा, इसलिए कहीं और जाओ। बुद्ध इतने प्रामाणिक थे कि गुरु भी धोखा न दे पाये। सब तरह खोज कर अंत में बुद्ध ने पाया कि नहीं, खोजने से कभी नहीं मिल सकेगा। उस क्षण बुद्ध के लिए आध्यात्म भी व्यर्थ हो गया, संसार पहले ही व्यर्थ हो चुका था। भोग व्यर्थ था ही - जिस दिन महल छोड़ा था - भोग उसी क्षण व्यर्थ हो चुका था, अब योग भी व्यर्थ हो गया। न भोग से कुछ मिला, न योग से कुछ मिला; अब क्या करें? अब करने को कुछ भी शेष न रहा, कर्ता होने की सुविधा ही समाप्त हो गई।
.
इसे गहरे अन्तस् में प्रवेश करने दें - न भोग बचा, न योग बचा; न संसार बचा, न स्वर्ग बचा - इसलिए कर्ता होने की अब सुविधा ही शेष न रही। करने को कुछ शेष हो तो कर्ता बचा रह सकता है। संसार छूटा था तो योग ने पकड़ लिया था, भोग छोड़ दिया था तो आध्यात्म ने पकड़ लिया था; कुछ था करने को, जिसमे मन उलझा हुआ था। अब मन को कोई जगह न बची। अहंकार के लिए कर्ता का रस चाहिए, कुछ हो करने को तो अहंकार बचे; करने को कुछ था ही नहीं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें