शनिवार, 26 मई 2018

= जीवित मृतक का अँग(२३ - ४/६) =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*जीवित मृतक का अँग २३* 
जीवित माटी मिल रहे, सांई सन्मुख होइ । 
दादू पहली मर रहे, पीछे तो सब कोइ ॥४॥ 
भजन द्वारा परमात्मा के सन्मुख हो, पृथ्वी की सहन शक्ति रूप मत से मिलकर आयु - समाप्ति से पूर्व ही मृतक के समान निरभिमान और सम होकर रहे, वही जीवन्मुक्त है । आयु समाप्ति के बाद तो सभी मरते हैं ।
*दीनता - गरीबी* 
आपा गर्व गुमान तज, मद मत्सर अहँकार । 
गहै गरीबी बँदगी, सेवा सिरजनहार ॥५॥ 
५ - ७ में दीन होकर रहने की प्रेरणा कर रहे हैं, जाति का अभिमान, शरीर बल का गर्व, धन का घमँड, विद्या का मद, अन्यों से ईर्ष्या और रूप के अहँकार को त्याग कर विनम्र भाव से ईश्वर को प्रणाम करते हुये उनकी भक्ति कर । 
मद मत्सर आपा नहीं, कैसा गर्व गुमान ।
स्वप्ने ही समझे नहीं, दादू क्या अभिमान ॥६॥ 
जिसके हृदय में विद्या - मद, अन्यों से ईर्ष्या, जाति का अभिमान, बल का गर्व, धन का घमँड नहीं है और जो किसी भी प्रकार के अभिमान के विषय में स्वप्न में भी नहीं समझता कि अभिमान क्या होता है, वही गरीब माना जाता है । 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें