गुरुवार, 31 मई 2018

= पूरबी भाषा बरवै(ग्रन्थ ३८/१-२) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷

🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏

🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷

रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*

संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री

साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,

अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज

*https://www.facebook.com/DADUVANI*

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*= पूरबी भाषा बरवै(ग्रन्थ ३८) =*
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{महात्मा अपने अवधूतपन(जीवन्मुक्त्ता) की मस्ती में पूरबी भाषा में - जिस पर कि वाराणसी में सुधीर्घ काल तक रहने के कारण उनका पूर्ण अधिकार था, विपर्यय (विरोधाभास अलंकार) के माध्यम से जिज्ञासुओं की आध्यात्मिक रहस्य का उपदेश कर रहे हैं ।} 
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*= बरवै =*
*सद्गुरु चरण निनाऊं मस्तक मोर ।* 
*बरवै सरस सुनावऊं अद्भुत जोर ॥१॥*
ग्रन्थ प्रारम्भ करने से पुर्व मैं अपने सद्गुरु(श्री दादूदयाल जी महाराज) के श्रीचरणकमलों में(जिनकी कृपा से मुझे यह रहस्यानुभूति हुई है) अपना शिर नँवाता हूँ । फिर सरस(ललित) बरवै छन्द के माध्यम से अद्भुत और गूढ़ आध्यात्मिक रहस्य का वर्णन करता हूँ ॥१॥ (*बरवै छन्द-(पूर्बीभाषा में)-मात्रिक छन्द । विषम(पाहिले तीसरे पाद में)१२, १२ मात्रा और दूसरे चौथे में ७, ७ की मात्रा होती है ।) 
*पण्डित होइ सु पावइ अरथ अनूप ।* 
*हेठ भरल पनिहारिय ऊपर कूप ॥२॥* 
मेरे लिये इस रहस्य का कोई पण्डित(ज्ञानी) ही वास्तविक(आध्यात्मिक अर्थ समझ सकेगा) जिसके यहाँ पनिहारिनें(पानी भरने वाली स्त्रियाँ, या इन्द्रियाँ) नीचे पानी भर रही हों जब कि कूआँ ऊपर(आकाश में) हो । (अर्थात् जिस योगी की इन्द्रियाँ और चित्तवृत्तियाँ योगाभ्यास द्वारा ब्रह्माण्ड में नीरुद्ध हो चुकी हों ।) ॥२॥
(क्रमशः)

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