मंगलवार, 29 मई 2018

= त्रिविध अन्तःकरण भेद(ग्रन्थ ३७ / ७-८) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
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*=त्रिविध अन्तःकरण भेद(ग्रन्थ ३७)=*
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*= अहंकार विषयक प्रश्न =*
*बहि जो अहं१ सु कौन प्रकारा ।*
*अंतः अहं कौन निर्द्धारा ॥*
*परम अहं कैसैं करि पइये ।*
*सुन्दर सद्गुरु मोहि लखइये ॥७॥*
(अब त्रिविध अहंकार के विषय में प्रश्न है --) बाह्य-अहंकार की भी आपने तीन अवस्थाएं बतायी थीं - बाह्य अहंकार, अन्तरहंकार और परम अहंकार । हे सद्गुरु ! इन तीनों का भी विशद वर्णन करने की कृपा करें?॥७॥
(१.अहं= अहंकार ।)
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*= उत्तर =*
*बहि जो आहं देह अभिमानी ।*
*चारि वर्ण अंतिज लौं प्रानी ॥*
*अंतः अहं कहै हरिदासं ।*
*परम अहं हरि स्वयं प्रकासं ॥८॥*
हे शिष्य ! देहाभिमानी अहंकार को ‘बहिरहंकार’ कहते हैं, जिसकी लपेट में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र आदि सभी प्राणी आये हुए हैं । भगवान् की सेव्य- सेवकावस्था में अहंभाव ‘अन्तरहंकार’ कहलाता है । ‘परमअहंकार’ तब होता है जब ज्ञानी ब्रह्म-साक्षात्कार कर स्वयंप्रकाश आत्मा से अद्वैत भाव को प्राप्त कर लेता है ॥८॥
(क्रमशः)

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