मंगलवार, 5 जून 2018

= पूरबी भाषा बरवै(ग्रन्थ ३८/१०-११) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
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*= पूरबी भाषा बरवै(ग्रन्थ ३८) =*
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*अंब डार पर बैसल कोकिल कीर ।*
*मधुर मधुर धुनि बोलइ सुखकर सीर ॥१०॥*
इस बाग के आमों की डालियों पर कोयल, तोते जगह-जगह पर बैठै हुए मीठी-मीठी ध्वनि में बोली बोल रहे हैं, जिससे सुननेवाले को सुखकर तुषार(हिमकरण) सा अनुभव होता है ॥१०॥
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*अवर अनेक विहंगम चातक मोर ।*
*चकवा कोकिल केकिय प्रकट चकोर ॥११॥*
दूसरी जगह और भी अनेक प्रकार के पक्षी हैं, जैसे चातक, मोर, चकवा, कोयल, केकी, चकोर आदि - इन सभी के मन को उस बाग की वह फूली बसन्त ऋतु मोह रही है ॥११॥
(क्रमशः)

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