रविवार, 3 जून 2018

= १२० =

卐 सत्यराम सा 卐
*सांसैं सांस संभालतां, इक दिन मिलि है आइ ।*
*सुमिरण पैंडा सहज का, सतगुरु दिया बताइ ॥* 
===========================
साभार ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi

####### श्री गोरखवाणी #######

सबद बिंदौ रै अवधू सबद बिंदौ, थांन मांन सब धंधा ।
आतमां मधे प्रभातमां दीसै, ज्यौ जल मधे चंदा ॥१२४॥
संपत्ति-संग्रह, मठ-मंदिर का निर्माण आदि प्रपंचों में न पङ कर सबद(गुरुप्रदत्त मंत्र) का जाप नरलस भाव से करने पर देह के भीतर आत्मा में ही परमात्मा की अनुभूति होने लगती है, जैसे चंद्रमा दूर होते हुए भी जल के किनारे बैठने पर उसका प्रतिबिंब अत्यन्त नजदीक प्रतिभासित होता है।
### संस्कार बिन्दु पत्रिका साँभरलेक को सौजन्य से ###
----------सत्यराम सा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें