रविवार, 3 जून 2018

= पूरबी भाषा बरवै(ग्रन्थ ३८/५-७) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
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*= पूरबी भाषा बरवै(ग्रन्थ ३८) =*
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*औरउ अचिरज देखल बांझ कपूत ।*
*पंगु चढल परबत पर बड अवधूत ॥५॥*
मैंने उस योगी के घर में एक और आश्चर्य देखा है कि उसके घरवाली बन्ध्या(सात्विक बुद्धि) है, परन्तु उसको पुत्र(ब्रह्मज्ञान) उत्पन्न हुआ है ॥५॥
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*जल महिं पावक प्रज्लयउ पुंज प्रकास ।*
*कंवल प्रफुल्लित भइले अधिक सुवास ॥६॥*
उसके यहाँ शीतल जल(सात्वि्क अन्तःकरण) में (ब्रह्मज्ञानी) अग्नि प्रज्वलित है । अब उसका ह्रदयकमल पूर्ण प्रफुल्लित(आनन्दमग्न) है । और वह अर्थी(जिज्ञासु) जनों को पहले की अपेक्षा अधिक सुगन्ध(तत्त्वोपदेश) देता हैं ॥६॥
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*अंधकार मिटि गइले ऊगल भान ।*
*हंस चुगै मुक्ताफल सरवर मान ॥७॥*
उसका अन्धकार(अविद्या, माया का) पूर्णतः मिट गया; क्योंकि(ज्ञानरुपी) सूर्य उदय हो गया है । अब वहाँ(उसके पास बैठ कर हंस रूपी ज्ञान के प्यासे जिज्ञासुजन) उसे मानसरोवर मान कर मुक्ताफल(ज्ञान, वैराग्य तथा ब्रह्म का उपदेश) प्राप्त करते हैं ॥७॥
(क्रमशः)

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