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卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*सजीवन का अँग २६*
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काल - अँग के अनन्तर सजीवन का विचार करने के लिए "सजीवन का अँग" कथन करने में प्रवृत्त हुये मँगल कर रहे हैं -
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दादू नमो नमो निरंजनँ, नमस्कार गुरुदेवत: ।
वन्दनँ सर्व साधवा, प्रणामँ पारँगत: ॥१॥
जिनकी कृपा से साधक सँपूर्ण गुण विकार रूप काल से मुक्त होकर सजीवन ब्रह्म को प्राप्त होता है, उन निरंजन राम, सद्गुरु और सर्व सँतों को हम अनेक प्रणाम करते हैं ।
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दादू जे तूं योगी गुरुमुखी, तो लेना तत्व विचार ।
गह आयुध गुरु ज्ञान का, काल पुरुष को मार ॥२॥
२ - ७ से सजीवनता की प्राप्ति आदि का विचार कह रहे हैं - हे योगी ! यदि तू गुरु आज्ञा में चलने वाला है तो आत्म - तत्व के विचार द्वारा गुरु के अभेद - ज्ञान रूप शस्त्र को अन्त:करण - रूपी हाथ में ग्रहण करके काल - पुरुष को मार दे ।
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नाद बिन्दु सौं घट भरे, सो जोगी जीवे ।
दादू काहे को मरे, राम रस पीवे ॥३॥
योगी जिसका ध्यान करते हैं ऐसे प्रणव पर रहने वाले अर्ध चन्ज्रूप नाद और उसके ऊपर की बिन्दु के ध्यान से अन्त:करण परिपूर्ण रखता है वो "सोऽहँ रामादि मँत्र" रूप नाद के चिन्तन से अन्त:करण और ब्रह्मचर्य द्वारा वीर्य से शरीर परिपूर्ण रखता है, वह योगी ब्रह्म को प्राप्त होकर सदा जीवित रहता है । उक्त प्रकार जो रामरस का पान करते हैं, वे क्यों मरेंगे ?
(क्रमशः)
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