#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= ११. राग देवगन्धार =*
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(१)
*अब कै सतगुरु मोहि जगायौ ।*
*सूतौ हुतौ अचेत नींद मैं, बहुत काल दुःख पायौ ॥(टेक)*
इस बार मेरे सद्गुरु ने मुझ को जगा दिया । मैं तो संज्ञारहित (बेहोश) होकर पड़ा था, उनने मुझ को सावधान किया, मैं तो बहुत समय से सांसारिक कष्ट से त्रस्त था ॥टेक॥
*कब हूं भयौ देव कर्मनि करि, कब हूं इन्द्र कहायौ ।*
*कब हूं भूत पिशाच निशाचर, षात न कब हूं अघायौ ॥१॥*
कभी मैं देवताओं के समान उदात्त कर्म करता हुआ इन्द्र कहलाया । कभी मैं हीन-कर्मों के कारण भूत, प्रेत, निशाचर आदि की योनि में पहुँच गया । मैं वहाँ किसी अन्य की अधिक से अधिक हानि करके भी कभी सन्तुष्ट न हुआ ॥१॥
(क्रमशः)
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