#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*सजीवन का अँग २६*
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दादू जागहु लागहु राम सौं, छाड़हु विषय विकार ।
जीवहु पीवहु राम रस, आतम साधन सार ॥२५॥
विषय - विकारों को छोड़ो तथा मोह - निद्रा से जाग कर राम की भक्ति में लगो और जब तक जीवित रहो, तब तक निरँतर राम - भक्ति - रस का पान करते रहो ! आत्म - कल्याण का यही सार साधन है ।
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स्मरण नाम निस्सँशय
मरे तो पावे पीव को, जीवित बँचे काल ।
दादू निर्भय नाम ले, दोनों हाथ दयाल ॥२६॥
२४ - २५ में स्मरण की विशेषता बता रहे हैं - स्मरण करते हुये यदि मृत्यु हो जाती है तो परमात्मा को प्राप्त करता है और जीवित रहता है तो कामादि रूप काल से बचा रहकर सब में प्रभु को देखता रहता है । अत: निर्भय होकर नाम - स्मरण करने से जीवन - मरण रूप दोनों हाथों में ही दयालु परमात्मा की प्राप्ति है ।
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दादू मरणे को चल्या, सजीवन के साथ ।
दादू लाहा१ मूल सौँ, दोन्यों आये हाथ ॥२७॥
जब साधक स्मरण द्वारा सजीवन ब्रह्म से मिलकर मृत्यु के लिए प्रस्थान करता है तब मनुष्य जीवन रूप मूल और उससे होने वाला भक्ति रूप लाभ१, दोनों ही उसके हाथ आ जाते हैं अर्थात् उसका जीवन सार्थक हो जाता है ।
(क्रमशः)
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