#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*मूंड मुण्डाइ तिलक सिर दीयौ, माला गरै झुलाई ।*
*जौ सुमिरन कीनौ सब सन्तनि, सौ तौ षवरि न पाई ॥३॥*
*तहबन्ध बांधि कुतक्का लीना, दम दम करै दिवाना ।*
*महमद की करनी नहिं जानै, क्यौं पावै रहिमाना ॥४॥*
*दरसन लियौ भली तुम कीनी, क्रोध करौ जिनि कोई ।*
*सुन्दरदास कहै अभिअन्तरि, बस्तु बिचारौ सोई ॥५॥*
शिर मुंडा कर, मस्तक पर तिलक लगा कर, गले में माला डाल लेने से क्या होता है । जिस विधि से सन्तों ने उस का भजन किया था, वह विधि तो हमें तुम्हारे पास दिखायी नहीं देती ॥३॥
कटि तक वस्त्र पहन कर, हाथ में एक छोटा डंडा लेकर द्वार द्वार पर ‘बम, बम’ बोलता फिरता है । तूँ उन सिद्ध पुरुष मुहम्मद उच्च आध्यात्मिक क्रियाओं को तो जानता ही नहीं तो तूँ उस सर्वव्यापक प्रभु का साक्षात्कार कैसे कर सकता है ॥४॥
महात्मा सुन्दरदासजी तुमको भी यही परामर्श देते हैं कि अब बस, तुम इतना ओर करो कि तुम उस आन्तरिक तत्त्व पर भी गूढ चिन्तन आरम्भ कर दो ॥५॥
(क्रमशः)
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