#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= १७. राग जैजैवन्ती(१/२)=*
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*जाकै रूपरेष कछु बरणि कह्यौ न जाइ ।*
*अलष अमूरति अमर अबिनास है ॥३॥*
*सोहं सोहं बार बार होतई रहत नित्य ।*
*याही मैं संमुझि जो उठत तेरै स्वास है ॥४॥*
*एकता बिचारै जब सुन्दर ही स्वामी होइ ।*
*दूसरौ बिचारै तब सुन्दर ही दास है ॥५॥*
जिसके आकार का न कोई रूप है न रेखा । वह तो अवर्णनीय है, अलक्ष्य है, अमूर्त(सूक्ष्म) है, अमर है, अविनाशी है ॥३॥
तेरे हृदय में ‘सोहं’ ‘सोहं’ का नाद प्रतिक्षण होता रहता है । उस नाद को तूँ अपने श्वास से मिलाने का प्रयास कर ॥४॥
अद्वैत मत से विचार करे तो सुन्दर(शिष्य) ही स्वामी प्रतीत होगा । हाँ, यदि द्वैत मत से विचार्रें तो ‘दास’(शिष्य) एवं ‘सुन्दर’(गुरु) दो हैं ही ॥५॥
(क्रमशः)
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