#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*पतिव्रता गृह आपने, करै खसम की सेव ।*
*ज्यों राखै त्यों ही रहै, आज्ञाकारी टेव ॥*
===============
**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
.
**पतिव्रता का अंग ६६**
इस अंग में पतिव्रत संबंधी विचार कर रहे हैं ~
.
पतिव्रता के पीव बिन, पुरुष न जन्म्या कोय ।
त्यों रज्जब रामहिं रचै, तिनके दिल नहीं दोय ॥१॥
पतिव्रता के लिये अपने पति से अन्य कोई भी पुरुष नहीं जन्मता, वह अपने पति को ही पुरुष समझती है, वैसे ही जो संत राम में अनुरक्त है, उसके मन में दूसरे के लिये स्थान नहीं रहता है ।
.
आन पुरुष परसै नहीं, दोष न दे भरतार ।
तो रज्जब राम हिं भजो, तेत्तीसौं तिरस्कार ॥२॥
पतिव्रता अन्य पुरुष का स्पर्श नहीं करती और अपने पति को कोई प्रकार का दोष नहीं देती, तब वे साधको ! तुमको भी ११रूद्र, १२आदित्य, ८वसु, २अश्विनी कुमार इन तैतीस देवताओं की उपासना त्याग कर एक राम का ही भजन करना चाहिये ।
.
सुन नर देवी देवता, सब जग देख्या जोय ।
रज्जब नाहीं राम सा, सगा सनेही कोय ॥३॥
स्वर्ग के देवता, मनुष्य, ग्राम्य देवी-देवता आदि सब जगत को दृष्टि फैलाकर देख लिया है, राम के समान प्रेमी-संबन्धी कोई भी नहीं है ।
.
नक्षत्र रूप निरजर१ सभी, पै तम न नैन नर नाश ।
रज्जब रबि रमता द्रसै, जे नहीं करै प्रकाश ॥४॥
आकाश में सभी नक्षत्र हैं किन्तु जब तक सूर्य प्रकाश नहीं करते तब तक मनुष्य के नेत्रों के आगे का अंधकार नष्ट नहीं होता, वैसे ही सभी देवता१ हैं परन्तु रमता राम के दर्शन बिना हृदय का अज्ञान नष्ट नहीं होता ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें