#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= १६. राग सोरठ (१२/१)=*
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(१२/१)
*सोई संता भला मोहि लागै हो ।*
*राम निरंजन सौं मन लावै,*
*कनक कांमिनी त्यागै हो ॥(टेक)*
*तजि संसार उलटि नहिं आवै,*
*जो पग धरै स आगै हो ।*
*ज्ञान षडग ले सनमुष झूझै,*
*फिरि पीछै नहिं भागै हो ॥१॥*
वे सन्त ही हमारे लिये श्रद्धेय हैं जो निरन्जन निराकार का ध्यान करते हैं तथा सांसारिक सम्पत्ति एवं नारी का हृदय से त्याग कर चुके हों ॥टेक॥
जो संसार का एक बार त्याग कर वैराग्य धारण कर लेते हैं, वे पुनः संसार की ओर मुख नहीं करते, ऐसे साधू को ही हम श्रद्धा के योग्य समझते हैं । अपितु अपनी साधना में आगे ही आगे बढ़ते रहते हैं । तथा ज्ञानखड्ग का आश्रय लेकर सांसारिक विपत्तियों से जूझते रहते हैं, पीछे नहीं हटते ॥१॥
(क्रमशः)
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