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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= १६. राग सोरठ (१५/१)=*
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*भाई रे प्रकट्या ज्ञान उजाला ।*
*अहंकार भ्रम गयौ बिलाई,*
*सतगुरु किये निहाला ॥(टेक)*
*इहै ज्ञान गहि ब्रह्मा बोले*
*कहिये आदि कुलाला ।*
*इहै ज्ञान गहि सत गुन धरिकैं*
*बिष्णु करैं प्रतिपाला ॥१॥*
*इहै ज्ञान गहि शंकर गौरी*
*प्रेम मग्न मति वाला ।*
*इहै ज्ञान गहि शुक मुनि नारद*
*बोलत बैंन रसाला ॥२॥*
ज्ञान का प्रकाश हो गया है । इसके कारण, सांसारिक मिथ्याभिमान एवं भ्रम दोनों निवृत हो गये हैं । ऐसा करते हुए गुरुदेव ने मुझ को कृतकृत्य(उपकृत) कर दिया है ॥टेक॥
इसी ज्ञान का ब्रह्मा ने उपदेश किया था, जो लोक में आदि कुलाल(विधाता) कहे गये । इसी ज्ञान को विष्णु ने कहा था, जो सत्त्वगुण के आश्रय से जगद्रक्षक बने ॥१॥
इसी ज्ञान का आश्रयण कर शिवपार्वती आध्यात्मिक प्रेम में उन्मत्त हुए । शुकदेव एवं नारद मुनि भी इसी ज्ञान के आलम्बन से भक्ति सूत्र के वक्ता बने ॥२॥
(क्रमशः)
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