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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= १६. राग सोरठ (११/२)=*
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*दया करी उनि सब सुष दाता,*
*अबकै लिये उबारी हो ।*
*भवसागर मैं बूडत काढे,*
*ऐसै परउपगारी हो ॥३॥*
*गुरु दादू के चरण कंवल परि,*
*मेल्हौं सीस उतारी हो ।*
*और कहा ले आगै राषै,*
*सुन्दर भेट तुम्हारी हो ॥४॥*
उन सर्वसुखदायक गुरुदेव ने मुझ पर बहुत कृपा की है । उनने अपने उपदेश के प्रभाव से मेरा जगत् से उद्धार कर दिया है । उनने भवसागर में डूबते हुए मुझको निकल लिया है ? वे ऐसे परोपकारी हैं ॥३॥
अतः मैं अपने गुरुदेव श्रीदादूदयाल के चरण कमलों पर अपना मस्तक न्यौछावर(त्याग) करता हूँ । महाराज सुन्दरदासजी कहते हैं – इससे उत्तम भेंट अन्य क्या हो सकती है जो मैंने अभी आप को अर्पित की है ॥४॥
(क्रमशः)
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