गुरुवार, 7 मार्च 2019

परिचय का अंग २६७/२७१

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श्रीदादूवाणी भावार्थदीपिका भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य ।
साभार विद्युत संस्करण ~ महामंडलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज,श्री दादूद्वारा बगड,झुंझुनू ।
*हस्तलिखित वाणीजी* चित्र सौजन्य ~ Tapasvi Ram Gopal
(श्री दादूवाणी ~ परिचय का अंग)
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संतप्रवर महर्षि श्रीदादूदयाल जी महाराज बता रहे हैं कि ::
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सूक्ष्म सौंज
पिव सौं खेलौं प्रेम रस, तो जियरे जक होइ ।
दादू पावे सेज सुख, पड़दा नाहीं कोइ ॥२६७॥
पूर्वोक्त आभ्यन्तर साधनों द्वारा मैं मेरे प्यारे प्रभु के साथ अर्चना, वंदना आदि भक्ति करते हुए प्रेमरस में जब डूब जाऊंगा, तभी साक्षात्काररूपी खेल खेलते हुए मैं सुखानुभव कर पाऊंगा और तब अद्वैतरूपी शय्या पर बैठ परमानन्द स्वरूप हो पाऊंगा ।
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सेवग बिसरे आपकूं, सेवा बिसर न जाय ।
दादू पूछे राम कूं, सो तत कहि समझाय ॥२६८॥
हे राम ! मैं आपसे पूछता हूँ कि यह कौन सी साधना है जिसके सहारे मैं आपको कभी न भूल पाऊं, अपितु मैं अपने देहाध्यास(अहं-ममत्व) को सदा के लिये भूल जाऊँ?
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ज्यों रसिया रस पीवतां, आपा भूले और ।
यूँ दादू रहि गया एक रस, पीवत-पीवत ठौर ॥२६९॥
जब भक्त का हृदय प्रेमरस से भर जाय, तब प्रेमोत्पत्ति के कारण उसका कण्ठ अवरुद्ध हो जाता है, आँखें आँसुओं से भर उठती हैं और भगवद्दर्शन हेतु व्याकुल हो उठता है । तब भक्त, स्वयं को मद्य पीने वाले की तरह भूलकर, उसी रस में डूबने-उतराने लगता है ।
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जहँ सेवक तहँ साहिब बैठा, सेवक सेवा माँहि ।
दादू सांई सब करै, कोई जानै नाँहि ॥२७०॥
जब भक्त का हृदय विषयों से विरक्त होकर भगवान् की सेवा में अनुरक्त होकर परमानन्द का अनुभव करता है, तभी भगवान् भी भक्त की योगक्षेमादि सेवा करने के लिये भक्त के हृदय में आ विराजते हैं । इस प्रकार की सेवा को अभक्त लोग कभी भी नहीं जान पाते ।
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दादू सेवक सांई वश किया, सौंप्या सब परिवार ।
तब साहिब सेवा करे, सेवग, के दरबार ॥२७१॥
जब भक्त की इन्द्रियाँ भगवत्प्रेमावेश के कारण संसार की तरफ से शिथिल हो जाती हैं तथा भक्त जब अपनी सभी इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि भगवान् को अर्पित कर देता है, तब योगीश्वरों से भी अप्राप्य भगवान् भक्त के घर जाकर उस के योगक्षेम पूरा करने की समस्त सेवायें करने लगते हैं ।
(क्रमशः)

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