#daduji
॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
*विनती का अँग ३४*
.
तिल तिल का अपराधी तेरा, रती रती का चोर ।
पल पल का मैं गुनही१ तेरा, बख्शहु२ अवगुण मोर ॥५॥
हे प्रभो ! मैं तो एक - एक क्षण के सँकल्प रूप कार्यों में भी निर्दोष नहीं रहने से आपका अपराधी हूं और छोटे - छोटे कार्य भी आपकी आज्ञानुसार नहीं कर सकने से चोर हूं । यदि मैं अपने जीवन के समय की ओर देखता हूं तो प्रत्येक पल में आपका अपराधी१ ठहरता हूं । मैं अपने पुरुषार्थ से आपके सन्मुख निर्दोष बन सकूं, ऐसी मुझे आशा नहीं है । अत: आप मेरे अवगुण क्षमा२ करने की कृपा करें ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें