सोमवार, 25 मार्च 2019

= सुन्दर पदावली(१८. राग रामगरी - १/१) =


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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*अवधू भेष देषि जिनि भूलै ।* 
*जब लग आतम दृष्टि न आई तब लग मिटै न सूलै ॥(टेक)* 
*मुद्रा पहरि कहावत जोगी, युगति न दीसै हाथा ।* 
*वह मारग कहुं रह्यौ अनत ही, पहुंचै गोरषनाथा ॥१॥* 
*लै संन्यास करै बहु तामस, लम्बी जटा बधावै ।* 
*दत्तदेव की रहनि न जानै, तत्त कहां तैं पावै ॥२॥* 
अरे साधू ! किसी का पहनावा(वेश भूषा) देखकर भ्रम में न पड़ । जब तक तूँ आत्मदृष्टि का चिन्तन नहीं करेगा तब तक तेरा यह भ्रम नहीं मिटेगा ॥टेक॥ 
कानों में मुद्रा धारण करने से लोग तुमको ‘योगी’ समझ रहे हैं, परन्तु उस योग का कोई साधन तुम्हारे पास नहीं दिखायी देता । वह मार्ग तो तुमसे कहीं दूर ही दिखायी देता है, जिससे श्री गोरखनाथ अपने लक्ष्य तक पहुँचे थे ॥१॥ 
लोक से संन्यास लेकर भी तामसवृत्ति ही धारण किये रहै, लम्बी जटा बढ़ा लें, परन्तु दत्तात्रेय आदि की एक भी योगक्रिया का अनुभव न हो तो तत्त्व की प्राप्ति कैसे होगी !॥२॥
(क्रमशः)

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