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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= १६. राग सोरठ (१५/२)=*
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*इहै ज्ञान गहि राम भजत है*
*बैठे शेष पताला ।*
*इहै ज्ञान गहि प्रगट जती भये*
*ऐसै हनुमत बाला ॥३॥*
*इहै ज्ञान गहि जन प्रहलादू*
*बचे अग्नि की झाला ।*
*इहै ज्ञान गहि धू अबिनासी*
*टरत न काहू टाला ॥४॥*
*इहै ज्ञान गहि दत्त दिगम्बर,*
*यहु न लई मृगछाला ।*
*इहै ज्ञान गहि गोरष जोगी,*
*जीति लियौ जम काला ॥५॥*
इसी ज्ञान का आलम्बन कर शेषनाग पाताल में तथा योगीश्वर हनुमान् भूलोक में रामभजन करते हुए प्रतिष्ठित हुए ॥३॥
इसी ज्ञान के आश्रय से भक्त प्रह्लाद पिता की क्रोधाग्नि से बच पाये थे । इसी ज्ञान का सहारा बालक ध्रुव भगवान् के नित्य भक्त बन सके । उनको भगवद्भक्ति से कोई डिगा नहीं पाया ॥४॥
इसी ज्ञान को ग्रहण कर दत्त सब कुछ त्यागकर ऐसे दिगम्बर हो गये कि शरीर रक्षा हेतु उनने एक वस्त्र या मृगछाला की भी आवश्यकता नहीं समझी । यही साधना करते हुए । इसी साधना को पूर्ण कर योगी गोरखनाथ ने मृत्यु पर विजय प्राप्त की ॥५॥
(क्रमशः)
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