#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*जब देव निरंजन पूजिये,*
*तब सब आया उस मांहि ।*
*डाल पान फल फूल सब, दादू न्यारे नांहि ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
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**पतिव्रता का अंग ६६**
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डाल पान फल फूल के, जड़ सींचे संतोष ।
त्यों रज्जब राम हिं भज्यों, सुर नर धर हिं न दोष ॥३७॥
वृक्ष की जड़ में जल सींचने से डाल, पत्ते, फूल, फल इन सबको ही पोष मिलकर ही सन्तोष होता है वैसे ही राम का भजन करने से सुर, नर आदि सभी को सन्तोष होता है कोई भी भक्त को दोष नहीं लगाते ।
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सब संतन की राशि हरि, सोई पुंज१ उर धारि ।
यूं रज्जब सब सेइये, गुरु मुख ज्ञान विचारि ॥३८॥
सभी संतो की धन-राशि हरि हैं, उसी राशि१ को हृदय में धारण कर । इसी प्रकार सभी संतों के उपास्य की सेवा होने से सभी की सेवा हो जाती है, किन्तु गुरु-मुख ज्ञान-विचार द्वारा ही ऐसा होता है ।
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जैसी विधि पय१ पान कर, घीव दधि तक्र पीन२ ।
तैसी विध हरि सौं मिले, सो रज्जब सब लीन३ ॥३९॥
जिस प्रकार दूध१ पीने से धृत, दही, छाछ, सभी पी२ लिये जाते हैं, उसी प्रकार से जो हरि से मिल जाता है वह सभी को प्राप्त कर लेता३ है ।
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सांई में जो आइया, साधू दिल सु१ समाय ।
ज्यों रज्जब अक्षर पढे, लग२ भी बाँची जाय ॥४०॥
जैसे अक्षर पढने के साथ मात्रा२ भी पढी जाती है, वैसे ही संत हृदय से प्रभु का ध्यान करते हैं तब जो प्रभु में आया हुआ है सो१ साधु के हृदय में भी आ जाता है, अत: पतिव्रतापूर्वक भजन करने से संत ब्रह्मरूप हो जाता है ।
(क्रमशः)
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