सोमवार, 25 मार्च 2019

= १९९ =


🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*सुघट घाट अरु तिरबो तीर,*
*बैठे तहाँ जगत-गुरु पीर ॥*
*दादू न जाणै तिन का भेव,*
*आप लखावै अंतर देव ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ पद्यांश. ६९)*
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श्री समर्थ रामदास स्वामी एक दिन अपने शिष्यों के साथ यात्रा पर निकले। दोपहर के समय एक बहुत बड़े कुएँ से लगे एक वृक्ष के पास पहुंच कर वे विश्राम करने । उन्होंने अपने शिष्यो को निकट बुलाया। वृक्ष की एक शाखा कुए के ऊपर थी। उसकी ओर संकेत करते हुए पूछा – ‘क्या तुम मैं से कोई इस शाखा को काट सकता है?’ इस शाखा के पत्ते पतझड़ में गिरकर कुएँ का पानी दूषित करते होंगे। परंतु शाखा को उसके मूल स्थान से ही काटना पड़ेगा।’
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वृक्ष बिल्कुल सीधा था उस शाखा के अतिरिक्त वहाँ दूसरी कोई शाखा नहीं थी, जिस पर खड़े होकर कोई उस शाखा को काट सके। शाखा को मूल स्थान से काटने का मतलब था कि उसी शाखा पर खड़े होकर उसे काटा जाए। पैरों को टिकाने का कोई स्थान ही न था। निश्चय ही शाखा काटने वाला कुएँ में गिरेगा और उसकी मृत्यु भी निश्चित थी।
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जब बहुत समय तक कोई बड़ा गुरुभाई सामने नहीं आया, तब श्री अम्बादास जी नाम के शिष्य सामने आकर प्रणाम् करके बोले, ‘यदि आप आज्ञा दें तो गुरुदेव जरूर काट दूँगा।’ अम्बादास ने विनम्रता से कहा।
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गुरुदेव ने कहा, क्या तुम्हे यह ज्ञात है कि डाल काटने पर तुम इस गहरे कुएं में गिर जाओगे। अम्बादास जी ने कहा, भगवन क्या गुरुदेव की आज्ञा पालन करके आज तक कोई गिरा है?
समर्थ स्वामी प्रसन्न होकर बोले – ‘तो कुल्हाड़ी लेकर वृक्ष पर चढ़ जाओ और उस शाखा को काट डालो।
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सभी शिष्य यह आज्ञा सुनकर श्री समर्थ के मुख की ओर निहारते, कभी अम्बादास की ओर निहारते, तो कभी उस शाखा की ओर। गुरु की आज्ञा पाते ही उसने अपनी धोती बाँधी और कुल्हाड़ी लेकर वृक्ष पर चढ़ गया। उसी शाखा पर खड़े होकर उसने कुल्हाड़ी चलानी शुरू कर दी।
श्री रामदास स्वामी ने फिर परीक्षा लेने हेतु कहा- ‘सोच समझ कर विचार करना, ऐसे डाल काटने में तो तू कुएँ में चला जाएगा।’
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परंतु इस बार भी वह नहीं डरा। उसने कहा- ‘गुरुदेव ! आपकी महती कृपा मुझे संसार-सागर से पार उतारने में पूर्ण समर्थ है।’ तो फिर यह कूप किस गणना में है। मैं तो आपके आशीर्वाद से ही आज तक सदैव सुरक्षित रहा हूँ कुआं हो या साक्षात यमराज ही क्यों ना आ जाए आपकी कृपा से मेरा बाल भी बांका ना होगा और आपकी कृपा के बिना मैं चाहे कुएं में गिर जाऊं या यह डाल न काटकर बाहर ही खड़ा रहूं अगले पल भी जीवित रह सकूंगा यह क्या पता है... गुरु जी महाराज ने कहा जब इतनी श्रद्धा है तो फिर अपना काम करो।’ श्री समर्थ ने आज्ञा प्रदान कर दी।
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शाखा आधी से कुछ ज्यादा ही कट पाई थी कि टूटकर अम्बादास के साथ कुएँ में जा गिरी। सभी शिष्य व्याकुल हो उठे, परंतु स्वामी समर्थ रामदास शांत बैठे रहे। उनमें जिसकी इतनी श्रद्धा है, उसका अमंगल संभव ही न था।
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अम्बादास जैसे ही कुँए में गिरा तो श्रीरामजी ने उनको धर लिया। अम्बादास जी को कुएँ में अपने इष्टदेव भगवान राम का प्रत्यक्ष दर्शन हुआ।
शिष्यों के प्रयास से अम्बादास को कुएँ से निकाला गया तो वह गुरुदेव के चरणों में लेट गया। *आपने तो मेरा कल्याण कर दिया।*
‘कल्याण तो तेरी श्रद्धा ने कर दिया। तू अब कल्याण रूप हो गया’। श्री समर्थ रामदासजी ने कहा। तभी से अम्बादासजी का नाम कल्याण स्वामी हो गया।

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