#daduji
॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*विनती का अँग ३४*
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साहिब साध दयालु हैं, हम ही अपराधी ।
दादू जीव अभागिया, अविद्या२ साधी१॥२८॥
भगवान् और सँत - जन तो परम दयालु हैं । सँत - जन सदा हित की शिक्षा देते रहते हैं और भगवान् निष्कपट भाव से किंचित् प्रार्थना करने पर भी अनन्त जन्मों के पापों को भस्म कर डालते हैं । अत: हम मँदभागी जीव ही अपराधी हैं, कारण, हमने निरँतर असत्य माया२ को प्राप्त करने की ही साधना१ की है ।
(क्रमशः)
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