शनिवार, 13 अप्रैल 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*दादू दया दयालु की, सो क्यों छानी होइ ।*
*प्रेम पुलक मुलकत रहै, सदा सुहागनी सोइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
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एक बार तुलसीदास जी महाराज को किसी ने बताया की जगन्नाथ जी में तो साक्षात भगवान ही दर्शन देते हैं बस फिर क्या था सुनकर तुलसीदास जी महाराज तो बहुत ही प्रसन्न हुए और अपने इष्टदेव का दर्शन करने श्रीजगन्नाथपुरी को चल दिए । 
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महीनों की कठिन और थका देने वाली यात्रा के उपरांत जब वह जगन्नाथ पुरी पहुंचे तो मंदिर में भक्तों की भीड़ देख कर प्रसन्नमन से अंदर प्रविष्ट हुए ।जगन्नाथ जी का दर्शन करते ही उन्हें बड़ा धक्का सा लगा वह निराश हो गये । और विचार किया कि यह हस्तपादविहीन देव हमारे जगत में सबसे सुंदर नेत्रों को सुख देने वाले मेरे इष्ट श्री राम नहीं हो सकते ।
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इस प्रकार दुखी मन से बाहर निकल कर दूर एक वृक्ष के तले बैठ गये । सोचा कि इतनी दूर आना ब्यर्थ हुआ । क्या गोलाकार नेत्रों वाला हस्तपादविहीन दारुदेव मेरा राम हो सकता है? कदापि नहीं । रात्रि हो गयी, थके-माँदे, भूखे-प्यासे तुलसी का अंग टूट रहा था ।
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अचानक एक आहट हुई । वे ध्यान से सुनने लगे । अरे बाबा ! तुलसीदास कौन है? एक बालक हाथों में थाली लिए पुकार रहा था । आपने सोचा साथ आए लोगों में से शायद किसी ने पुजारियों को बता दिया होगा कि तुलसीदास जी भी दर्शन करने को आए हैं इसलिये उन्होने प्रसाद भेज दिया होगा आप उठते हुए बोले - 'हाँ भाई ! मैं ही हूँ तुलसीदास ।'
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बालक ने कहा - 'अरे ! आप यहाँ हैं । मैं बड़ी देर से आपको खोज रहा हूँ ।'
बालक ने कहा - 'लीजिए, जगन्नाथ जी ने आपके लिए प्रसाद भेजा है ।'
तुलसीदास बोले - भैया कृपा करके इसे बापस ले जायँ।
बालक ने कहा, आश्चर्य की बात है, 'जगन्नाथ का भात-जगत पसारे हाथ' और वह भी स्वयं महाप्रभु ने भेजा और आप अस्वीकार कर रहे हैं । कारण?
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तुलसीदास बोले, 'अरे भाई ! मैं बिना अपने इष्ट को भोग लगाये कुछ ग्रहण नहीं करता । फिर यह जगन्नाथ का जूठा प्रसाद जिसे मैं अपने इष्ट को समर्पित न कर सकूँ, यह मेरे किस काम का ?'
बालक ने मुस्कराते हुए कहा अरे, बाबा ! आपके इष्ट ने ही तो भेजा है ।
तुलसीदास बोले - यह हस्तपादविहीन दारुमूर्ति मेरा इष्ट नहीं हो सकता ।
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बालक ने कहा कि फिर आपने अपने श्रीरामचरितमानस में यह किस रूप का वर्णन किया है --
बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना।
कर बिनु कर्म करइ बिधि नाना ॥
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु बानी बकता बड़ जोगी ॥
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अब तुलसीदास की भाव-भंगिमा देखने लायक थी। नेत्रों में अश्रु-बिन्दु, मुख से शब्द नहीं निकल रहे थे । थाल रखकर बालक यह कहकर अदृश्य हो गया कि *मैं ही तुम्हारा राम हूँ* । मेरे मंदिर के चारों द्वारों पर हनुमान का पहरा है । विभीषण नित्य मेरे दर्शन को आता है । कल प्रातः तुम भी आकर दर्शन कर लेना ।
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तुलसीदास जी की स्थिति ऐसी की रोमावली रोमांचित थी नेत्रों से अस्त्र अविरल बह रहे थे और शरीर की कोई सुध ही नहीं उन्होंने बड़े ही प्रेम से प्रसाद ग्रहण किया ।
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प्रातः मंदिर में जब तुलसीदास जी महाराज दर्शन करने के लिए गए तब उन्हें जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के स्थान पर श्री राम, लक्ष्मण एवं जानकी के भव्य दर्शन हुए। भगवान ने भक्त की इच्छा पूरी की ।
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जिस स्थान पर तुलसीदास जी ने रात्रि व्यतीत की थी, वह स्थान *'तुलसी चौरा'* नाम से विख्यात हुआ । वहाँ पर तुलसीदास जी की पीठ *'बड़छता मठ'* के रूप में प्रतिष्ठित है।

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